उदयपुर पत्रिका डॉट कॉम इन दिनों उस मुद्दे पर काम कर रहा हैं जो जनता से जुड़े जिनके लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता हैं। उदयपुर पत्रिका डॉट कॉम की “हाल ए शहर” सीरीज में वो मुद्दे प्रकाशित किए जाएंगे जो जनता से सीधे जुड़ाव रखते हैं और शहर की जनता किस परेशानी से जूझ रही हैं हम इस सीरीज में आपको बताएंगे।
सोमवार को “हाल ए शहर” में “व्यवस्था की बत्ती गुल: ट्रैफिक पुलिस के इशारे बेअसर, चौराहों पर रुकती ही नहीं गाड़ियां” इस खबर को प्रकाशित किया गया था। मंगलवार को हम आपके लिए “हाल ए शहर” में उदयपुर रोडवेज बस स्टैंड के ऑफिस से रुबरु कराएंगे। जहां किस तरह से कर्मचारी खस्ताहाल कमरों में बैठक अपने काम को झुझारू तरीके से कर रहे है। उन कमरों की छतों से टपकता पानी और जगह—जगह से टूटी दीवारें बंया कर रही हैं कि वहां पर कभी भी जानलेवा हादसा हो सकता हैं।
उदयपुर शहर के रोडवेज बस स्टैंड को आप बखूबी वाकिफ होंगे और होंगे भी क्यों नहीं क्योंकि जब भी आप को शहर के बाहर जाना हैं और बस का सफर करना है तो इसके लिए बस स्टैंड जाना जरूरी हैं। यहां पर आप टिकिट लेने के बाद सीधे बस में चढ़ जाते हैं और गंतव्य स्थान पहुंच जाते है लेकिन क्या आपने कभी जानने की कोशिश की है कि बस स्टैंड पर बने रोडवेज के ऑफिस का हाल क्या हैं और उस ऑफिस में बैठकर अधिकारी कैसे काम करते हैं।
स्मार्ट सिटी के नाम पर पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा हैं। थोड़ा सा ख्याल रोडवेज बस स्टैंड का कर लिया जाए तो शायद यहां पर होने वाले हादसे की आंशका लगभग खत्म हो जाएगी। माना कि रोडवेज बसों के हालात सुधारने में सरकार नाकाम साबित हो रही हैं लेकिन बस स्टैंड के हालात पर ध्यान दे दे तो कई जिंदगियों के साथ होने वाले खिलवाड़ से बचा जा सकता हैं।
यह पढ़ कर आप भी सोच रहे होंगे की जहां अधिकारी बैंठते होगें वो जगह बड़ी ही साफ सुथरी और सभी सुविधाओं युक्त होगी लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। उदयपुर रोडवेज का ऑफिस किसी पुराने ज़माने के खंडर से कम नहीं हैं, जहां टूटी इमारतें, झर्झर दीवारें और उनमें से टपकता पानी और बारिश के मौसम में तो ऐसा हाल की कमरे की सफाई करने के लिए पूरा दिन लग जाए फिर काम कब किया जाए। ऐसे हाल एक या दो कमरों का नहीं बल्कि अधिकांश कमरों के साथ उदयपुर रोडवेज डिपो के मुख्य प्रबंधक महेश उपाध्याय के कमरे का हाल भी कुछ ऐसा ही हैं।
इन दिनों जिस तरह तूफान आ रहा हैं और उससे होने वाला नुकसान पेड़ो और दिवारों तक ही सीमित नहीं हैं अब तो शहर में लगे लंबे-लंबे टावर भी इस तूफान की चपेट में आ रहे हैं तो आप सोच सकते हैं कि यहां की खस्ताहाल दीवारों को तूफान किस कदर नुकसान पहुंचा सकता हैं। यदि इन दीवारों से जुड़ा हुआ एक भी खंभा टूट जाए तो आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते कितनी बड़ी घटना हो सकती हैं। न ही सिर्फ वहां के कर्मचारियों के साथ बल्कि जो मुसाफिर वहां से सफर के लिए जा रहे है और आ रहे हैं। सभी हादसे का शिकार हो सकते हैं। उसमें पर्यटकों के साथ—साथ शहवासी भी हो सकते है, जाहिर है रोडवेज के कर्मचारी तो उसमें होगें ही।
अधिकारी चाहते हैं ऑफिस में हो रिनोवेशन का कार्य, बजट सबसे बड़ी बाधा
उदयपुर रोडवेज बस स्टेंड के हालातों के बारे में जब उदयपुर पत्रिका डॉट कॉम ने अधिकारियों से बात की तो उन्होंने बात करने से मना कर दिया लेकिन ऐसा नहीं है कि वे नहीं चाहते कि ऑफिस में रिनोवेशन का कार्य हो। वे चाहते हुए भी सरकार की खिलाफत नहीं कर सकते। अगर ऐसा किसी ने करने की कोशिश की भी कि तो कर्मचारियों को देरी से मिलने वाले वेतन में और देरी हो सकती हैं इससे उनके परिवारों भी संकट आ सकता हैं।
उदयपुर रेलवे स्टेशन बन सकता है विश्व स्तरीय सुविधाओं युक्त तो रोडवेज बस स्टेंड क्यों नहीं
हाल ही में केन्द्र के रेलवे विभाग ने उदयपुर सिटी स्टेशन की काया पलट करने के लिए करोड़ो का बजट जारी कर विश्व स्तरीय बनाने के लिए कार्य शुरू करवाया। ठीक इससे कुछ दूरी पर स्थित रोडवेज बस स्टेंड के हाल ऐसे है कि सिटी स्टेशन का कार्य पूरा होने के बाद रोडवेज बस स्टेंड तो उसके सामने खंडर लगेगा। सवाल यह है कि रेलवे जब सिटी स्टेशन की काया पलट सकता है तो राज्य सरकार बस स्टेंड की क्यों नहीं।