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धर्मांतरण विरोधी बिल, दक्षिणी राजस्थान पर होगा व्यापक असर

सांसद डॉ मन्नालाल रावत लंबे समय से प्रयासरत थे इस बिल के लिए

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उदयपुर। राजस्थान में धर्मातरण विरोधी बिल को मंजूरी मिल गई हैं। जनजाति बाहुल्य दक्षिणी राजस्थान में इस बिल के पारित होने का व्यापक असर पड़ेगा। उदयपुर सांसद डॉ मन्नालाल रावत विगत कई माहों से इस तरह का बिल लाए जाने के लिए अत्यधिक सक्रिय थे।

इसके पीछे मूल कारण यही था कि पिछले कुछ सालों में इस जनजाति क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय साजिश के तहत आदिवासी संस्कृति पर लगातार हमले हो रहे थे। इस क्षेत्र में तेजी से पनपी भारतीय आदिवासी पार्टी के नेता सार्वजनिक रूप से आदिवासी हिंदू नहीं है। आदिवासी युवतियां, महिलाएं मांग में सिंदूर नहीं भरें। गले में मंगलसूत्र नहीं पहनें। आदिवासी युवतियां का विवाह मुस्लिम से कराया जाना चाहिए।

लोकसभा में गूंजा था मामला

दक्षिणी राजस्थान में भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) के नेताओं ने आदिवासी संस्कृति पर हमले किए जाने की घटनाओं के बाद सांसद डॉ मन्नालाल रावत ने लोकसभा में यह मामला उठाया था। जिस पर केंद्रीय कानून मंत्री ने संविधान का हवाला देते हुए कहा था कि आदिवासी हिंदू ही है।

बिरसा मुंडा जनजाति गौरव कार्यशाला के जरिए रखी नींव

भाजपा के नए प्रदेश प्रभारी डॉ. राधामोहन अग्रवाल व प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने कार्यभार ग्रहण करने से पूर्व दिल्ली में सांसद रावत के साथ महत्वपूर्ण बैठक की थी। जिसमें उदयपुर संभाग प्रभारी व भीलवाड़ा सांसद दामोदर अग्रवाल भी उपस्थित थे। सांसद डॉ रावत ने उन्हें दक्षिणी राजस्थान में ईसाई मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव व धर्मांतरण की प्रमुख समस्या से अवगत कराया था।

साथ ही जनजाति समाज की जागृति व अधिकारों के लिए कार्ययोजना रखी थी। प्रदेश प्रभारी व प्रदेश अध्यक्ष ने कुछ दिनों बाद इस क्षेत्र का दौरा किया। उन्हें उक्त कार्ययोजना को शीघ्र धरातल पर उतारने की जरूरत महसूस हुई।

सांसद डॉ मन्नालाल रावत को इन कार्यशालाओं का संयोजक मनोनीत किया। उदयपुर बांसवाड़ा में इन कार्यशालाओं के जरिए आदिवासी समाज को अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक किया। आदिवासी हिंदू हैं। हम एक हैं। न बंटेंगे, न कटेंगे की शपथ लेकर आदिवासी समाज धर्मांतरण के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था।

सजा का यह है प्रावधान

तय कानून से हटकर अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन पर 1 से 5 साल, नाबालिग व एससी-एसटी का धर्म परिवर्तन कराने पर 3 से 10 साल की सजा का प्रावधान रखा गया है। दूसरी और तीसरी बार इसी तरह के कृत्य करने या फिर सामूहिक धर्म परिवर्तन कराने के दोषी मिलने पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।

राजस्थान में पूर्व वसुन्धरा राजे सरकार के वक्त धर्म परिवर्तन कानून बनाया गया था लेकिन, राज्यपाल ने बिल को पारित करने की जगह राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेज दिया गया था। बिल लागू नहीं हो सकता था। अब फिर भजनलाल सरकार इस कानून को लाई है

। यूपी व एमपी में 2021, उत्तराखंड में 2018, गुजरात में 2019, हिमाचल में 2019, झारखंड में 2017, कर्नाटक में 2022 और इनसे कई सालों पूर्व उड़ीसा में 1967 में ही यह कानून लाया जा चुका है।

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