शहर के मंदिरों में कपड़ों को लेकर घमासान नहीं थम रहा। देवस्थान विभाग ने गुरुवार को कुछ मंदिरों से वे पोस्टर हटाए, जिसमें शॉट्र्स-टीशर्ट, बरमूडा-मिनी स्कर्ट जैसे कपड़े पहनकर मंदिर में प्रवेश नहीं करने की अपील थी। दूसरे ही दिन शुक्रवार को श्रद्धालु इसके विरोध में उतर आए। जगदीश मंदिर के बाहर चौक में नारे लगाकर प्रदर्शन किया गया।
मंदिर प्रबंधनों की ओर से परिसर की मर्यादा बनाए रखने के लिए लगाए गए पोस्टर्स हटाने की नाराजगी में विश्व हिंदू परिषद के बैनर तले कई संगठनों के प्रतिनिधि जगदीश चौक पहुंचे। मंदिर की सीढिय़ों पर धरना दे दिया। हालांकि श्रद्धालुओं-दर्शनार्थियों की आवाजाही बाधित नहीं हुई। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने कहा कि घर, स्कूल-कॉलेज, दफ्तर से लेकर हर जगह का अपना अनुशासन है। जिस तरह घर के कपड़े पहनकर स्कूल-कॉलेज या दफ्तर नहीं जा सकते, वैसे ही पार्टी वाले या फैशनेबल कपड़ों में स्कूल-कॉलेज नहीं जाया जा सकता। वहां भी इसकी पाबंदी है।
बच्चों को स्कूल ड्रेस में किसी शादी समारोह में नहीं ले जाया जाता तो मंदिरों में यह अनुशासन क्यों नहीं? प्रदर्शन के बाद प्रतिनिधिमंडल देवस्थान आयुक्त से मुलाकात करने भी पहुंचा। यहां पर प्रतिनिधियों के विरोध के बाद आयुक्त ने पूरे मामले को सरकार के पास भेजने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस तरह के पोस्टर और बैनर लगाने के कोई निर्देश मिलते हैं तो पूर्ण रूप से अवगत करवाया जाएगा लेकिन यह तभी संभव हैं जब पूरे राज्य के लिए एक साथ आदेश निकले।
परिषद सहित अन्य संगठनों के प्रतिनिधियिों ने दोहराया कि शॉट्र्स-टीशर्ट, बरमूडा-मिनी स्कर्ट, कटी-फटी जींस, नाइट सूट और तंग कपड़े पहनकर मंदिरों में दाखिल होना गलत है। कहा कि मंदिर प्रबंधन इस दिशा में कदम उठा रहे हैं तो देवस्थान विभाग अड़ंगा क्यों लगा रहा है? जबकि जिम्मेदारी होने के बावजूद यही विभाग मंदिरों की देखभाल तो समुचित कर ही नहीं रहा। विभाग के अधीन मंदिरों के पुजारी शिकायतें करके थके, लेकिन समस्याएं जस की तस हैं। जगदीश मंदिर की ही बात करें तो यहां ठाकुरजी के आभूषण जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं, लेकिन इन्हें सुधारने पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा। जबकि पुजारी परिषद कई बार यह परेशानी बता भी चुकी है।
प्रतिनिधि मंडल ने दिया बुधवार तक अल्टीमेटम
प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों ने देवस्थान विभाग के आयुक्त को अल्टीमेटम दिया कि बुधवार तक इस मसले का कोई हल निकाले अन्यथा मंदिर के बाहर लगाए पोस्टर वहां पर लगे रहने दे। अगर विभाग के द्धारा पोस्टर हटाने की कोई कार्यवाही की जाती हैं तो बुधवार के बाद फिर से उग्र प्रदर्शन किया जाएगा।
नजरिया : बात-सुझाव रखना जायज, निर्णय दर्शक-श्रोता पर छोड़िए
धार्मिक स्थलों पर ड्रेस कोड के साथ प्रवेश शहर में मुद्दे की तरह उभरकर आया है। पैरवी करने वालों की अपनी दलीलें हैं। सही भी है कि हर जगह की मर्यादा होनी चाहिए, लेकिन निर्णय किसी एक का नहीं, पूरे वर्ग का होना चाहिए कि ये लोग क्या सोचते हैं? पूरी संभावना है कि किसी दूसरे आयोजन में जा रहे युवक-युवतियां ऐसे कथित आपत्तिजनक कपड़ों में रास्ते के किसी मंदिर में दर्शन करने जा पहुंचे हों। ऐसे में उनकी श्रद्धा पर तो सवाल नहीं है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सब के सब ऐसे ही कपड़ों में मंदिर में जा रहे हैं। कुल मिलाकर ऐसे लोग गिनती के हैं! आस्था के विषयों पर वाद-विवाद बेमानी ही होता है।
श्रद्धा के आगे हर तर्क बेतुका है! पर यह कौन तय करेगा कि कौनसा पहनावा मर्यादित है और कौनसा अमर्यादित? बेहतर है कि हम सोच बदलने की शुरुआत खुद से करें। वैचारिक पवित्रता आत्म में लाएं। धर्म स्थल मानसिक शांति देते हैं। इनमें श्रेष्ठता के नए विचारों का स्वागत है। लोगों को जागरूक करने ेलिए बैनर-पोस्टर लगाएं। उन्हें समझाएं, लेकिन किसी को दर्शन करने से रोकना तो गलत ही होगा। ऐसा करके तो हम शांति के इन देवालयों को ही अशांत और क्लांत कर देंगे।
यहां ये भी गौर करने लायक है कि जब भी कोई अच्छी शुरुआत होती है, वह समय अंतराल के बाद स्वत: ही कानून या अनुशासन की तरह सामने होता है। इसलिए व्यवस्था को थोपें नहीं, आग्रह के साथ सुझाव की तरह पेश करें। उस पर दर्शक-श्रोता की वैचारिक सहमति लें, ताकि वे मन से अमल करें, न कि मजबूर होकर।