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उदयपुर में सुरेश वाडेकर की मखमली आवाज ने बांधा समां, सबके लबों पर गूंजे दिल के तराने

लेकसिटी में सोमवार की सुहानी शाम सुरों की मिठास में सराबोर हो गई, जब भारतीय संगीत के प्रसिद्ध गायक सुरेश वाडकर ने भारतीय लोक कला मंडल के मंच से अपने कालजयी गीतों की स्वर्णिम गूंज बिखेरी। उन्होंने अपनी मखमली आवाज़ में सुरों का ऐसा संसार रचा कि पूरा सभागार संगीतमय जादू में खो गया। सबके लबों पर दिलों के तराने गूंजे और होठों पर जीवंत मुस्कान खिल उठी। अतिथियों के साथ कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई, इसमें डॉ. अजय मुर्डिया, डॉ. नीतीज मुर्डिया, डॉ. क्षितिज मुर्डिया, डॉ. एच. एस. भुई, श्रद्धा मुर्डिया, आस्था मुर्डिया और दिनेश कटारिया ने भाग लिया। यूएसएम मेंबर्स ने वक्रतुंड महाकाय गणपति वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

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गानों से रोशन हुई दिल की ख्वाहिशें और खुल गए यादों के रोशनदान :

कार्यक्रम का आगाज ‘सत्यम शिवम् सुंदरम‘ से हुआ। ‘सीने में जलन, आँखों में तूफान सा क्यों है’ (गमन) ने माहौल को आत्मीयता और भावनात्मकता से भर दिया। इसके बाद जब ‘सूरज न मिले छाँव को’ (घर) गूंजा, तो श्रोताओं की आंखें भावनाओं से छलक उठीं। संगीत प्रेमियों की फरमाइश पर ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले’ (सदमा) नगमा होठों पर आया तो हर शब्द हवाओं में घुलता और आस पास पंख लगा कर उड़ता हुआ महसूस हुआ। जब सुरेश वाडेकर ने ‘हजार राहें मुडक़े देखीं, कहीं से कोई सदा न आई’ (थोड़ी सी बेवफाई) को अपनी भावपूर्ण आवाज़ में पेश किया, तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। बीतें हुए लम्हों की कसक मानों हौले से साथ हो ली। ‘तुमसे मिल के’ (प्यार तूने क्या किया) और ‘हुस्न पहाड़ों का’ (राम तेरी गंगा मैली) ने संगीतमय वातावरण को और भी मधुर बना दिया, मन की बहड़ और मन के पहाड़ों से मानों आनंदित और तृप्त करने वाले संगीत के झरने फूट पड़े।

रागों की मिठास और भक्ति का संगम :

सुरेश वाडेकर की गायकी सिर्फ रोमांटिक गीतों तक सीमित नहीं रही, उन्होंने ‘राम तेरी गंगा मैली हो गई’ (राम तेरी गंगा मैली) की प्रस्तुति दी तो माहौल आध्यात्मिक हो गया। बदलते परिवेश और आपाधापी भरी जिंदगी में बहुत कुछ पीछे छूट जाने का अहसास और आगे बहुत कुछ पा लेने की जिंद में नया संसार रचने का भाव बेचैनियों को जगा गया। इसके बाद जब उन्होंने ‘भंवरे ने खिलाया फूल’ (सुर संगम) और ‘पतझड़़ सावन, बसं बहार’ (सिंदूर) गाया, तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। लगा मानों गीतों का राजकुंवर मन के भंवरे के खिलाए फूल को मंत्रमुग्ध कर दूर कहीं लंबी सुकून वाली यात्रा पर ले गया।

शास्त्रीय और आधुनिकता का अनूठा मिश्रण :
उनकी प्रस्तुति में शास्त्रीय संगीत की मधुरता भी देखने को मिली। जैसे ही ‘मेघा रे मेघा रे मत परदेस जा रहे’ (प्यासा सावन) की कोमल धुनें गूंजीं, तो सुरों के मेघ उमड़-घुमड़ कर मन मयूर को नृत्य करवाने लग गए। प्रेम का संदेस बरसाने लगे। जब आरी आई, ‘ओ रब्बा कोई तो बताए, प्यार होता है क्या’ (साजन) और ‘और इस दिल में क्या रखा है’ (आईना) के गीतों की आई तो हर दिल झूम उठा। दर्द को गीतों का स्पर्श मिलते ही मनभावन सुरों के अहसास में स्मृतियों के गुलदस्तों में लगे फूल महकने लगे।

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