Udaipur Patrika

UDAIPUR PATRIKA

Breaking News
{"ticker_effect":"slide-h","autoplay":"true","speed":3000,"font_style":"normal"}

नवरात्रि स्थापना के साथ ही शक्तिपीठों पर भक्तों की भारी भीड

उदयपुर शहर में नवरात्रि स्थापना के साथ ही प्रमुख शक्तिपीठों पर भक्तों की भारी भीड पड़ना शुरू हो गई हैं। नवरात्रि के नौ दिनों तक प्रतिदिन आपको एक शक्तिपीठ के दर्शन करवाने के साथ ही वहां की विशेषताओं से रूबरू करवाएंगे।

Banner

पहले दिन आप दर्शन कीजिए बेदला माताजी के। जहां पर दर्शन करने से भक्तों के सभी पाप कट जाते है और सुख की अनुभूति होती हैं इसलिए इन्हे सुखदेवी माताजी के नाम से भी जाना जाता हैं। नवरात्रि शुरू होने के साथ ही यहां पर भक्तों की भीड शुरू हो गई। हर उम्र के भक्त यहां पर दर्शन करने पहुंच रहे है तो वहीं दूसरी और यहां पर आने वाले भक्तों ने माताजी से अपना मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की।

जानिए मंदिर के इतिहास के बारे में :

उदयपुर शहर से सटे बेदला गांव में एक अनोखा मंदिर है, जहां बड़ी संख्या में मुर्गे घूमते दिखाई देंगे। यहां छोड़े गए मुर्गों को लोग भोग के रूप में खरीदा अन्न चढ़ाते हैं। इतिहास के मुताबिक, अति प्राचीन इस मंदिर का जीर्णोंद्धार महाराणा फतह सिंह ने कराया था। बेदला तत्कालीन मेवाड़ राज्य का ठिकाना था और यहां रहने वाले ठिकाने दारों की कुलदेवी बेदला माता है। बेदला माता मंदिर जाने के लिए एक पहाड़ी को रास्ता काटकर बनाया गया है। लोग मानते हैं कि जो भी व्यक्ति इस पहाड़ी के बीच से होकर गुजरता है, वह उसके लिए सुखदायी साबित होता है।

कहा जाता है कि यही रास्ता माता के मंदिर का दरवाजा था। आठवीं सदी के इस अनोखे मंदिर में मन्नत पूरी होने पर लोग बकरे तथा मुर्गे छोड़कर जाते हैं। यह परंपरा अब भी जारी है। देवी माता के मंदिरों में हर जगह अष्टमी को भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन यहां मामला जुदा है। इस मंदिर में अष्टमी की बजाय नवमीं को भक्तों की भीड़ जुटती है। कई दशकों से जारी इस परंपरा को लेकर बुजुर्ग भी नहीं बता पाते, लेकिन वह कहते हैं कि मंदिर में बड़ी संख्या में रोगी आते हैं और अपने स्वास्थ्य होने की मन्नत मांगते हैं। स्वस्थ्य होने पर वह बकरा या मुर्गा चढ़ाते हैं।

बेदला माता जिसे गांव के लोग सुखदेवी माता भी कहते हैं। उनको लेकर गांव के लोग ही नहीं, बल्कि शहरी लोगों में बड़ी मान्यता है। वह नया वाहन खरीदने के बाद सुखदेवी माता के मंदिर अवश्य ले जाते हैं। वहां पूजा-अर्चना करते हैं। पक्षाघात होने पर क्षेत्र के लोग रोगी को यहां मंदिर में लाते हैं, उनका मानना है कि यहां आने के बाद उन्हें लाभ होना शुरू होने लगता है। निःसंतान दंपति भी यहां आते हैं और झोली भरने की मन्नत पूरी होने पर मंदिर प्रांगण में बने पेड़ों पर झूला टांगकर जाते हैं। मंदिर से बाहर आते हुए पीछे मुड़कर नहीं देखते इस मंदिर में देवी मां के दर्शन करने के बाद लौटते समय कोई भक्त पीछे मुड़कर नहीं देखता। मंदिर में इस बारे में साफ इंगित है। माना जाता है कि यहां भूतों का साया भी स्वत: ही हट जाता है।

 

Stay Connected

Share this post:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts
Don't Miss New Updates From Us
By subscribing to our WhatsApp updates, you'll be the first to know about important events and breaking news.
DON'T MISS NEW UPDATES FROM US
By subscribing to our WhatsApp updates, you'll be the first to know about important events and breaking news.