उदयपुर विरासत… फिर वो दौलत-इमारतों की हो, रिवाज-रवायतों की या कलाओं की। हरेक में हमारी संस्कृति और संस्कारों की महक है, जो एक से दूसरी और दूसरी से तीसरी पीढ़ी को महकाते हैं। अब इसके मुरीद परदेशी पावणे भी हैं, जो हमारे रंग में डूबे हैं। शहर की संस्था विरासत ने इस ट्रेंड को पहचाना है। अब यह संस्था न सिर्फ लोक नृत्य और कठपुतली कला का प्रशिक्षण दे रही है, बल्कि ऐसे इवेंट भी करवा रही है, जिसमें विदेशी मेहमान भारतीय रीति-रिवाजों से अपनी शादी कर रहे हैं।
वॉल सिटी के जगदीश चौक में सिटी पैलेस के पास विरासत संस्था रोज रात 7 से 8 और 8:30 से 9:30 बजे राजस्थानी फोक डांस (लोक नृत्य) और पपेट शो (कठपुतली प्रदर्शन) का करती है। इसे देखने के लिए शहरवासियों के अलावा देसी-विदेशी मेहमान भी पहुंचे हैं। संस्था की संचालक विजय लक्ष्मी आमेटा यहां इन मेहमानों को ट्रेनिंग देती हैं।
राजस्थान संगीत नाटक एकेडमी से अवार्ड पा चुकीं विजय लक्ष्मी इंटरनेशनल डांसर और कोरियोग्राफर भी हैं। अब वे विरासत को विदेशों में पहचान देने का काम कर रही हैं। शो देखने और ट्रेनिंग के लिए यहां कोई शुल्क नहीं है। हालांकि कोई अपनी इच्छा से कला प्रोत्साहन के लिए कुछ देना चाहता है, तो उसका स्वागत भी है।
असर : स्पेन से आए जोड़े ने विरासत में मनाई 60वीं वेडिंग एनिवर्सरी
भारत की बैंड-बाजा-बारात वाली लाउड और कलरफुल शादियां दुनिया भर में मशहूर है। फिर वो दक्षिण भारतीय रस्में हों या बंगाली-मराठी रिवाज। इन आयोजनों में राजस्थान का शाही वैभव और आवभगत तो टॉप पर है ही। इसी से प्रभावित होकर कोलंबिया से आए एक जोड़े ने कुछ समय पहले ही विरासत में अपनी 60वीं वेडिंग एनिवर्सरी सेलिब्रेट की।
कोलंबिया के मिस्टर और मिसेज लोपेज ने विरासत संस्था में हिंदू रिति-रिवाज से शादी अदा की। साथ आए मेहमानों को मेवाड़ी गीतों, वरमाला, पाणिग्रहण, वरमाला, सिंघाड़े खेलने का महत्व बताया गया। हर मेहमान के लिए यह इवेंट यादगार बन गया। जर्मनी से आए 5 मेहमानों ने सीखा लोकनृत्य और कठपुतलियां नचाना विरासत राजस्थानी फोक डांस और पपेट शो में जर्मनी से आए 5 मेहमानों ने ट्रेनिंग भी ली।
राजस्थान की कला को करीब से समझा तो इतने प्रभावित हुए कि वे इसे सीखकर भी गए। इसी साल अक्टूबर और नवंबर में भी यूएस का पर्यटक दल प्रशिक्षण के लिए आएगा। ट्रेनर विजयलक्ष्मी बताती हैं कि राजस्थान में विदेशी मेहमानों की पहली पसंद यहां की कला-संस्कृति ही है। संस्था का असल मकसद भी इन्हें जिंदा रखना और दुनिया भर तक पहुंचाना है। हमारी नई पीढ़ी इन लोक कलाओं से दूर होती जा रही है। इसलिए निशुल्क प्रशिक्षण रखे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे और किशोर इनसे जुड़ें।