उदयपुर के प्राचीन और ऐतिहासिक महालक्ष्मी मंदिर में इस वर्ष 18 से 22 अक्टूबर तक पाँच दिवसीय दीपोत्सव का आयोजन किया जाएगा। यह उत्सव न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि मेवाड़ की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा और आस्था का भी प्रतीक है। मंदिर परिसर भक्ति, श्रद्धा और मेवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर से सराबोर रहेगा।
आयोजन और तैयारियाँ
श्रीमाली जाति संपत्ति व्यवस्था ट्रस्ट और प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सुरक्षा, स्वच्छता, दर्शन व्यवस्था, रोशनी और अन्नकूट प्रसाद वितरण के लिए अलग-अलग समितियों का गठन किया है। ट्रस्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि लाखों श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो।

दीपोत्सव का कार्यक्रम
•18 अक्टूबर: धनतेरस: प्रात: 4:30 बजे माता महालक्ष्मी के मंगला दर्शन से दीपोत्सव का शुभारंभ होगा। इस दिन माता को तीन अलग-अलग वेशभूषाओं में श्रृंगारित किया जाएगा और विशेष पुष्प सज्जा की जाएगी। दर्शन देर रात तक जारी रहेंगे।
•19 अक्टूबर: रूप चौदस: माता का विशेष श्रृंगार किया जाएगा और दिनभर दर्शनार्थियों की भीड़ बनी रहेगी।
•21 अक्टूबर: दीपावली: माता महालक्ष्मी को सोने के आभूषणों और दिव्य श्रृंगार से अलंकृत किया जाएगा। पूरा मंदिर परिसर दीपों और पुष्पों की ज्योति से जगमगाएगा। रात्रि 1:30 बजे से 3:00 बजे तक मंदिर के पट बंद रहेंगे, इसके बाद दर्शन फिर से प्रारंभ होंगे। भोर 3:00 बजे से श्रद्धालु अन्नकूट पर्व में भाग लेंगे।
• 22 अक्टूबर: सुबह 3:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक माता के दर्शन होंगे। शाम 5:00 बजे अन्नकूट आरती के साथ दीपोत्सव का भव्य समापन होगा।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
उदयपुर का महालक्ष्मी मंदिर ‘गजलक्ष्मी स्वरूपÓ का प्रतीक है, जिसमें माता गजानन पर विराजमान हैं। यह समृद्धि, शक्ति और स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है। मंदिर की प्राचीनता, दिव्यता और ऐतिहासिक महत्व के कारण हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन हेतु आते हैं।
इस बार भी पूरे मंदिर परिसर में दीपों, पुष्पों और भक्ति संगीत की आलोकित सजावट की जाएगी। भक्तों के स्वागत हेतु विशेष तोरण द्वार, रोशनी और सजावट की व्यवस्थाएँ की गई हैं। अन्नकूट प्रसाद वितरण और अन्य व्यवस्थाओं के लिए ट्रस्ट द्वारा विशेष समितियाँ गठित की गई हैं।
इस बार दीपोत्सव के दौरान लाखों श्रद्धालु भक्ति संगीत, आरती और दीपों की रोशनी का आनंद लेंगे और अन्नकूट प्रसाद ग्रहण करेंगे, जिससे महालक्ष्मी मंदिर पुन: मेवाड़ के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन का केंद्र बन जाएगा।