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नवरात्रि में दूसरे दिन होती हैं ब्रह्मचारिणी मां की पूजा

उदयपुर। नवरात्रि में नौ दिनों तक अलग—अलग माताजी के स्वरूपों की पूजा होती हैं। दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की उपासना की जाती हैं।

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इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता हैं। कठोर साधना और ब्रह्म में लीन रहने के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया हैं। विद्यार्थियों के लिए और तपस्वियों के लिए इनकी पूजा बहुत ही शुभ फलदायी होती है। आपको इसी कडी में लेकसिटी में स्थानीय शक्तिपीठों में से एक नीमच माता मंदिर के इतिहास से रूबरू करवाते हैं।

नीमच माता का मंदिर

नीमच माता मंदिर उदयपुर शहर की खूबसूरत फतहसागर झील के समीप पहाडियों पर स्थित होने से इसे वैष्णोंदेवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। नीमच माता मंदिर पहाडी पर होने के बावजूद नवरात्रि में हजारों भक्त यहां पर दर्शन करने आते हैं।

नीमच माता मंदिर से उदयपुर शहर को देखा जा सकता हैं। यहां से फतहसागर के साथ पिछोला झील भी दिखाई देती हैं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 900 मीटर चढ़ाई चढ़कर जाना पड़ता हैं।

नीमच माता मंदिर के इतिहास के बारे में स्थानीय लोगों की माने तो नीमच माता देवाली पहाड़ी पर एक नीम के पेड़ से स्वयं उत्पन्न हुई थी माता, जिसकी वजह से इन्हें “नीमच माता” के नाम से जाना जाता है और इनके मंदिर को “नीमच माता मंदिर” का नाम दिया गया,

जहां पर ना केवल उदयपुर बल्कि देश के अन्य हिस्सों से भी श्रद्धालु हर साल नीमच माता के दर्शन करने आते हैं। नीमच माता मंदिर का निर्माण उदयपुर के शासक महाराणा रणजीत सिंह प्रथम ने करवाया था, जिसका निर्माण कार्य 1652 ई० में शुरू हुआ था और 1680 ई० में पूरी तरह से बन कर तैयार हो गया था।

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