Udaipur Patrika

UDAIPUR PATRIKA

Breaking News
{"ticker_effect":"slide-h","autoplay":"true","speed":3000,"font_style":"normal"}

शिल्पग्राम महोत्सव : माइनस की सर्दी में भी गरमाहट देते हैं हिमाचली ऊनी वस्त्र

अपनी ही भेड़ों की ऊन से हाथ से बनाते हैं जैकेट से लेकर टोपी तक

Banner

उदयपुर। पूर्व पीएम मनमाेहन सिंह के निधन पर सात दिवसीय राजकीय शोक की वजह से पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में सांस्कृतिक कार्यक्रम एक जनवरी तक नहीं होंगे। अलबत्ता, हस्त शिल्पियों और हथ करघा कारीगरों के उत्पादों के प्रति मेलार्थियों का रुझान देखते ही बनता है।


पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक फुरकान खान ने बताया कि शिल्प बाजार में हर स्टाल के उत्पाद हर मेलार्थी को न सिर्फ पसंद आ रहे हैं, बल्कि वे खरीदारी भी जमकर कर रहे हैं। यही माहौल शुक्रवार को भी दिनभर रहा, जो शाम तक भीड़ उमड़ने के साथ ही पूरे परवान पर चढ़ गया। लोगों को देश के विभिन्न राज्यों के उत्पाद और व्यंजन बहुत पसंद आ रहे हैं।

सर्दी बढ़ने के साथ ही बढ़ने लगी ऊनी वस्त्रों की सेल-

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से आए हथ करघा कारीगर बिट्‌टूराम हिमाचल की प्रतीक बन चुकी टोपी से लेकर जैकेट तक इतने जतन और कौशल से बनाते हैं कि देखते ही नजर ठहर जाए। खूबसूरत इतने हैं ये ऊनी वस्त्र कि स्टाल नंबर 8 के सामने कदम रुक ही जाते हैं।


आप शिल्पग्राम बाजार में आते हैं तो ऊनी वस्त्रों के स्टाल में आपको बरबस ही बिट्‌टूराम और उनकी पत्नी भावना देवी इस स्टाल पर ग्राहकों को वस्त्रों के बारे में बताते दिख जाएंगे। बिट्‌टूराम बताते हैं कि उनके पास खुद की भेड़ें हैं, जिनकी ऊन वे समय-समय पर उतार कर ऊनी टोपी, वस्त्र आदि बनाते हैं। ऊन लेकर उसको साफ कर घर पर ही हथ करघे पर उसका वस्त्र बना जैसा ऊनी आइटम बनाना हो, वैसी कटिंग कर उसे हाथ से ही सिल कर बनाते हैं। उत्पाद चाहे बड़ा हो या छोटा सारा मटैरियल हाथ से तैयार किया जाता है। स्टिचिंग के लिए 10 कारीगर काम पर लगाए जाते हैं।

ऊन सफेद, भूरे और काले रंग की-

बिट्‌टूराम बताते हैं भेड़ाें से उतरने वाली ऊन का ऑरिजनल कलर सफेद, भूरा और काला होता है। अन्य रंग देने के लिए इसे डाइ किया जाता है। डाइ भी घर पर ही कलर को पानी में उबाल कर तैयार की जाती है। उसके बाद डिजाइनिंग और स्टिचिंग का काम होता है। इसमें मार्केट की डिमांड का ख्याल रखा जाता है। कांगड़ा में भी उनकी दुकान है, लेकिन वहां कॉम्पटिशन बहुत रहता है। उन्होंने बताया कि शिल्पग्राम में उनके उत्पादों की अच्छी डिमांड है और मेलार्थी खूब खरीदारी कर रहे हैं।

गोहाना का जलेबा आकार और स्वाद दोनों में अव्वल-

हरियाणा के गोहाना में बरसों पहले नाथूराम, इंदर, प्यारेलाल और ओमप्रकाश हलवाई ने सोचा कि ऐसा कुछ बनाया जाए जो लोकल ही नहीं, देश में भी अपनी पहचान बनाए। और, ईजाद हो गया, गोहानी जलेबा का। इसकी खासियत यह है कि यह एक जलेबा एक पाव यानी 250 ग्राम का बनता है और सिर्फ इसे खाएं या दूध, या फिर पकोड़ियों के साथ, इसे जिसने चख लिया वो इसका पक्का फैन बन जाता है।

कुरकुरा और देशी घी के कारण कमाल का स्वाद-

यह जलेबा बनाने वाले नरेश कुमार बताते हैं कि हमारा एक ही सिद्धांत है, वह यह कि क्वालिटी से कोई समझौता नहीं करेंगे। वे सही भी कहते हैं। इसका गवाह खुद जलेबा है,जो देशी घी और कुरुकुरापने के कारण कमाल का स्वादिष्ट होता है। मुंह में रखो तो तुरंत खाकर अगला ग्रास लेने की इच्छा होती है। नरेश कुमार बताते हैं कि वे अब तक गोवा, चंडीगढ़, नोएडा, गोरखपुर, लखनऊ, आगरा, कुरुक्षेत्र आदि देशभर में होने वाले फेस्टिवल्स में शामिल हो चुके हैं। हर जगह इस जलेबा के ऐसे फैन बन गए हैं, जिनमें से कई तो मेले का टिकट खरीदकर सिर्फ जलेबा खाने आते हैं। नरेश शिल्पग्राम-उदयपुर में मिल रहे शानदार रेस्पॉन्स से काफी उत्साहित हैं।

Stay Connected

Share this post:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts
Don't Miss New Updates From Us
By subscribing to our WhatsApp updates, you'll be the first to know about important events and breaking news.
DON'T MISS NEW UPDATES FROM US
By subscribing to our WhatsApp updates, you'll be the first to know about important events and breaking news.