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लाखों दिव्यांग बालिकाओं की अकेली मां बन करती है सेवा, बेटियों के हौसले को दे रही है पंख ताकि उड़ सके बेटियां, नारी शक्ति और साधना का प्रतीक

भारतीय संस्कृति ने नारी को नारायणी कहा है क्योंकि उसमें त्याग भी है, करुणा भी, शक्ति भी और साधना भी। इसी नारायणी स्वरूप को साकार करती हैं उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान की निदेशक वंदना अग्रवाल, जो लाखों दिव्यांग बालिकाओं के जीवन में नई उम्मीद बन चुकी हैं। उन्होंने अपने जीवन में सिद्ध किया है कि नारी केवल जन्म देने वाली नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि की प्रेरणा है। वह कभी मां के रूप में ममता है, कभी बहन के रूप में स्नेह, कभी पत्नी के रूप में सहधर्मिणी और कभी बेटी बनकर परिवार की धड़कन। लाखों दिव्यांग बालिकाओं के मन में वंदना अग्रवाल के लिए एक मां जैसा सम्मान है। कई लड़कियां तो ऐसी है जिसका इलाज नारायण सेवा संस्थान में हुआ और रोजगार भी मिला तो जीवन साथी भी। इन सब में वंदना अग्रवाल और उनकी बेटी पलक का योगदान महत्वपूर्ण है। ये मां-बेटी की ऐसी जोड़ी है जिनकी सुबह दिव्यांगों के साथ से शुरू होती है शाम सेवा के अथाह सुकून के साथ। वो कहती है कि उनको ये प्रेरणा उनके ससुर कैलाश मानव की एक पक्तियां देती है-
देख एक-दो विघ्न हुआ मुझे  उल्टा विश्वास, बाधाओं के बीच ही तो करती हैं कार्य सिद्धि वास।

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मां बनकर लाखों बेटियों का सहारा
वंदना अग्रवाल के लिए सेवा केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि साधना है। वे संस्थान की निदेशक भर नहीं, बल्कि उन मासूम बेटियों की माँ हैं जिन्हें समाज ने अक्सर अनदेखा किया। उनकी संवेदनशीलता ने बच्चियों को न केवल नया जीवन दिया बल्कि जीने का आत्मविश्वास भी। हर सुबह उनका दिन उन मुस्कानों से शुरू होता है जो कभी दर्द से दब चुकी थीं और हर शाम उनका अंत इस संतोष के साथ होता है कि किसी बेटी के जीवन में आशा का दीपक जल सका। उनकी बेटी पलक भी इस सेवा यात्रा की सच्ची सहभागी है। यह माँ-बेटी की जोड़ी अपनी करुणा और समर्पण से हजारों नहीं बल्कि लाखों जिंदगियों में उजाला फैला रही है।

शिक्षा से सेवा की ओर
25 मार्च 1974 को ब्यावर (अजमेर) में जन्मी वंदना अग्रवाल का सपना था आईएएस अधिकारी बनकर समाज की सेवा करना। उन्होंने वाणिज्य विषय में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की, परंतु विवाह के बाद जब वे उदयपुर आईं तो उनका जीवन नई दिशा में मुड़ गया। पति प्रशांत अग्रवाल और ससुर पद्मश्री कैलाश मानव की प्रेरणा ने उन्हें सिखाया कि समाज सेवा केवल किसी पद की मोहताज नहीं होती। तभी से उन्होंने नारायण सेवा संस्थान को अपना परिवार और मानवता को अपना धर्म मान लिया।

डॉक्टर और मरीज के बीच का पुल
शुरुआती दिनों में वे अस्पताल में डॉक्टरों और मरीजों के बीच खड़ी होकर उनकी तकलीफ को सुनती और समझती थीं। वे कहती हैं— मैं आज भी डॉक्टर और मरीज के बीच एक ब्रिज हूँ। उनके दर्द को महसूस कर पाना ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। यही संवेदनशीलता उन्हें हर जरूरतमंद तक खींच ले जाती है और यही वजह है कि आज वे दिव्यांगों के मन में माँ की तरह पूजी जाती हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

“वंदना अग्रवाल “

सेवा का संसार बुना, त्याग और करूणा की कहानियां रची
वंदना जी की सेवा केवल अस्पताल की दीवारों तक सीमित नहीं है। उन्होंने हर साल 501 दिव्यांग कन्याओं की नि:शुल्क सर्जरी कराकर उन्हें नया जीवन दिया और माता स्वरूप पूजन के साथ उनके जीवन की नई यात्रा का उत्सव मनाया। कोरोना काल में गांव-गांव पहुंचकर महिलाओं और बच्चों को सहारा दिया, निर्धन परिवारों को वर्षों तक राशन उपलब्ध कराया और गंभीर रोगों से पीडि़त सैकड़ों बच्चों व महिलाओं का इलाज करवाया। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने 510 अनाथ और निर्धन बालिकाओं की पढ़ाई का जिम्मा उठाया। महिला सशक्तिकरण के लिए 2300 सिलाई मशीनें और 340 सब्जी के ठेले वितरित किए तथा 500 से अधिक महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाया। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए 90 हजार से ज्यादा ड्रेस, जूते और स्कूल बैग बाँटे। ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में 78 हैंडपंप खुदवाकर प्यास बुझाई। ये सब आँकड़े मात्र उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि त्याग और करुणा से उपजी वे कहानियाँ हैं जो समाज में नई ऊर्जा का संचार करती हैं।

आदर्श और प्रेरणा
वंदना अग्रवाल अपने ससुर, पद्मश्री कैलाश मानव को ही अपना आदर्श मानती हैं। वे कहती हैं कि बाऊजी ने ही सिखाया कि असली धर्म सेवा है। उसी शिक्षा के कारण आज भी उनका हर दिन सेवा की राह पर चलता है। उनकी बेटी पलक भी दादा और पिता की राह पर चल रही है। एमबीए करने के बाद भी उसने यह संकल्प लिया है कि उसका जीवन भी दिव्यांगों की सेवा को ही समर्पित होगा।

समाज और सम्मान
समाज में बेटियों के सम्मान और गृहस्थ जीवन की स्थापना के लिए वंदना जी ने सामूहिक विवाह जैसे अनूठे आयोजन किए। कच्छ भूकंप हो, बाढ़ हो या तूफान—हर आपदा में वे अपनी टीम लेकर राहत पहुँचाती रहीं। ठंड में कंबल वितरण हो या पौष्टिक आहार पहुँचाना, उनका जीवन सेवा की निरंतर साधना है। उनके त्याग और करुणा को देखते हुए राजस्थान सरकार ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया, साथ ही जिला और राज्य स्तर पर अनेक पुरस्कार भी प्रदान किए गए।

नारी का सच्चा स्वरूप
वंदना अग्रवाल का जीवन इस सत्य को प्रमाणित करता है कि नारी केवल घर की धुरी ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज की दिशा बदलने वाली शक्ति है। जब नारी सेवा और साधना का रूप धारण करती है, तो वह नारायणी बन जाती है। उनकी अपनी वाणी में— मेरे लिए सेवा ही पूजा है। जब किसी माँ की आँखों में संतोष और किसी बेटी के चेहरे पर मुस्कान देखती हूँ, तो लगता है जीवन सार्थक हो गया।

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