इस वर्ष उदयपुर में परशुराम जयंती हर्षो व उल्लास के साथ मनाई जाएगी। वहीं कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। भगवान परशुराम जन्मोत्सव के अवसर पर विप्र फाउण्डेशन, उदयपुर और भगवान श्री परशुराम सर्व ब्रह्म समाज द्वारा पांच दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किए जाएगें। कोरोना महामारी के तीन साल बाद यह कार्यक्रम धूम-धाम से मनाया जाएगा।
19 अप्रैल से 23 अप्रैल तक होंगे पांच दिवसीय कार्यक्रम
विप्र फाउण्डेशन के प्रदेश अध्यक्ष व कार्यक्रम के मुख्य संयोजक के. के शर्मा ने बताया कि पांच दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत 19 अप्रैल सांय 6.30 बजे परशुराम चौराहे पर भगवान परशुराम की मुर्ति स्थापित करने के बाद आरती और दीप प्रज्जलन से होगी। साथ ही महिला प्रकोष्ठ द्वारा रंगोली प्रतियोगिता रखी जाएगी, जिसके पुरस्कार 28 अप्रैल को दिए जाएंगे। अगले चार दिनों में विभिन्न स्थानों पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसमें 20 अप्रैल को शाम 6.30 बजे आयड़ स्थित गंगू कुण्ड में पालीवाल समाज और शाकद्वीपीय ब्राह्मण समाज द्वारा गंगा आरती का आयोजन किया जाएगा। 21 अप्रैल शुक्रवार को प्रातः 9 बजे वल्लभाचार्य पार्क स्थित परशुराम भगवान की मूर्ति को पंचामृत से स्नान करवाया जाएगा। इसके बाद उनका श्रृंगार, हवन पूजन और आरती की जाएगी। अगले दिन विप्र फाउण्डेशन युवा प्रकोष्ठ के संयोजन से एम.बी. इण्डोर स्टेडियम में रक्तदान कार्यक्रम होगा। इस दिन 500 युनिट रक्तदान का लक्ष्य रखा गया है।
पांच दिवसीय कार्यक्रम के आखिरी दिन 23 अप्रैल रविवार प्रातः 8 बजे 1555 दुपहिया वाहन के साथ विशाल शोभायात्रा निकाली जाएगी। जिसमें लगभग 2500 लोगों के शामिल होने की सम्भावना है। मुख्य संयोजक ने बताया कि शोभायात्रा में 4-5 घोड़े, 5 बग्गी, साथ ही जीप में परशुराम की मूर्ति को वियाज कर यात्रा प्रारंभ की जाएगी। शोभायात्रा में राजस्थान का प्रसिद्ध नृत्य गेर आकर्षण का केंद्र रहेगा। युवा प्रकोष्ठ द्वारा 100 कार्यकर्ताओं की टीम बनाई गई है जो सुरक्षा का ध्यान रखेगी।
शोभायात्रा सुबह 8 बजे फतह स्कूल से प्रारंभ होकर सूरजपोल, अस्थल मन्दिर झीणीरेत, धानमंडी, संतोषी माता मन्दिर, देहली गेट, बापू बजार, सूरजपोल से फतह स्कूल पहुंच कर धर्म सभा में परिवर्तित होगी। धर्मसभा में कई संत भी शामिल होंगे और उदयपुर के 55 ब्राह्मण समाज में से हर एक समाज के 2-3 सबसे वृद्ध जनों को सम्मानित किया जाएगा। शोभायात्रा के बाद महाप्रसादी में दस हजार लोगों को शामिल का लक्ष्य बनाया गया है।
हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसी तिथि पर अक्षय तृतीया का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान परशुराम की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती है और शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं। भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्राण कुल में हुआ था लेकिन उनका स्वभाव और गुण क्षत्रियों जैसा था। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार सात ऐसे चिंरजीवी देवता हैं, जो युगों-युगों से इस पृथ्वी पर मौजूद हैं। इन्हीं में से एक भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम। आइए जानते हैं भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी कुछ बातें।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है और महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का जन्म धरती पर हो रहे अन्याय पाप और अधर्मो का का विनाश करने के लिए हुआ था। उनके जन्म के बाद उनका नाम राम रखा गया था। वे भगवान शिव की कठोर साधना करते थे और भगवान शिव ने भी उनके पराक्रम को देखकर उन्हें कई दिव्य अस्त्र प्रदान किए। उन्हीं में से एक परशुवस्त्र था इसे प्राप्त करते ही उनका नाम परशुराम हो गया। मान्यताओं के अनुसार एक बार परशुराम की माँ रेणुका से कोई अपराध हो गया था तब भगवान परशुराम के पिता ने क्रोधित होकर अपने सभी पुत्रों से माँ का वध करने का आदेश दे दिया। भगवान परशुराम के सभी भाईओं ने मना कर दिया लेकिन भगवान परशुराम अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उनका वध कर दिया जिससे प्रसन्न होकर उनके पिता ने उनसे 3 वर माँगने के लिए कहा। तीन वर में परशुराम ने पहला अपनी माँ को जीवित करना, दूसरा बडे भाईओं को ठीक करने का और तीसरा जीवन में कभी भी पराजय न होने का आशीर्वाद माँगा।
गणेश पुराण के अनुसार परशुराम भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर पहुँचे थे। लेकिन शिव और पार्वती के पुत्र भगवान गणेश ने शिवजी से मिलने से रोक दिया। इससे क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने भगवान श्री गणेश का दाँत तोड़ दिया। इसके बाद से ही भगवान गणेश को एकदंत भी कहा जाने लगा। रामायण और महाभारत दो युगों की पहचान हैं। रामायण त्रेतायुग में और महाभारत द्वापर में हुई थी। पुराणों के अनुसार एक युग लाखों वर्षों का होता है। ऐसे में देखें तो भगवान परशुराम ने न सिर्फ श्री राम की लीला बल्कि महाभारत का युद्ध भी देखा।
परशुराम जी ने कर्ण और पितामह भीष्म को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी दी थी। कर्ण ने भगवान परशुराम से झूठ बोलकर शिक्षा ग्रहण की थी। जब यह बात परशुराम जी को पता चली तो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि जिस विद्या को उसने झूठ बोलकर प्राप्त की है, वही विद्या युद्ध के समय वह भूल जाएगा और कोई भी अस्त्र या शस्त्र नहीं चला पाएगा। भगवान परशुराम का यही श्राप अंतत: कर्ण की मृत्यु का कारण भी बना।