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नेहरू गार्डन में सुविधाओं का अभाव, किराए पर उठे सवाल

आंखोंं देखी : रिपोर्टर- सुनील पंडित, घनश्याम सिंह राव

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फाउंटेन बंद, पर्यटक बोले – सिर्फ नाव यात्रा और हरियाली ही राहत

उदयपुर। लेकसिटी के फतहसागर झील के बीच स्थित ऐतिहासिक नेहरू गार्डन एक बार फिर चर्चा में है। करीब चार साल के लंबे अंतराल के बाद इसे पर्यटकों के लिए खोला गया, लेकिन यहां की वास्तविक स्थिति देख कर आने वाले मेहमान निराश और हताश होकर लौट रहे है। व्यवस्थाओं के बड़े-बड़े दावे खोखले साबित हो रहे है। हकीकत में सुविधाओं का अभाव साफ झलक रहा है। द मेवाड़ पोस्ट के दो रिपोर्टर ने करीब मंगलवार को 5 घंटे से भी अधिक समय पार्क और उसके आसपास गुजारकर महसूस किया कि पर्यटकों का मन यहां आकर मसोज रहा है। क्योंकि यहां जाने का किराया इतना है पर्यटक ऑटो में बैठकर पहले यहां आता है और करीब 200 रूपए तक का किराया चुकाता है। इसके बाद 210 रूपए का किराया चुकाकर नाव से नेहरू गार्डन पहुंचता है और वहां सिर्फ अपने को ठगा हुआ महसूस करके वापस लौट रहा है।

किराए को लेकर नाराजगी

गार्डन तक पहुंचने के लिए नाव से आने-जाने का किराया पहले से ज्यादा कर दिया गया है। पर्यटकों का कहना है कि मौजूदा किराए के हिसाब से यहां उन्हें कोई खास सुविधा या आकर्षण नहीं मिल रहा। कई लोगों ने सवाल उठाया कि अगर फव्वारे, रेस्टोरेंट और अन्य आकर्षण बंद हैं तो शुल्क भी उसी अनुसार कम होना चाहिए। गार्डन में बने खूबसूरत फव्वारे और जहाजनुमा रेस्टोरेंट वर्षों से बंद पड़े हैं। फिलहाल केवल हरियाली और शांत वातावरण ही पर्यटकों को कुछ पल का सुकून दे रहा है। जिम्मेदारों का कहना है कि धीरे-धीरे सभी व्यवस्थाएं शुरू की जाएंगी, लेकिन पर्यटक पूछ रहे हैं कि बिना सुविधाओं के किराए का बोझ क्यों डाला जा रहा है।

पर्यटकों की प्रतिक्रियाएं

कोटा से आईं डॉ. किरण ने बताया कि यहां के फव्वारे बंद पड़े हैं और सिर्फ टब जैसे लगते हैं। उन्होंने तुलना करते हुए कहा कि कोटा का ऑक्सीजन सिटी पार्क सुविधाओं और सौंदर्य की दृष्टि से कहीं आगे है। वहां 3डी मैपिंग, डक पॉन्ड, झरना, ब्रिज, फूड जोन, कैफे, एम्फीथियेटर, किड्स जोन और ओपन जिम तक मौजूद हैं। जबकि नेहरू गार्डन में सिर्फ हरियाली और नाव की यात्रा ही उपलब्ध है।

जयपुर से आए राहुल मीणा का कहना है कि यहां पहले जो आकर्षण हुआ करते थे, जैसे रंग-बिरंगे फव्वारे और म्यूजिकल शो, वे अब बंद हो चुके हैं। बच्चों के लिए कोई विशेष गतिविधि नहीं है और गर्मी में फव्वारे बंद होने से यहां ठहरना मुश्किल हो रहा है। जिस उम्मीद के साथ यहां आए है उससे ज्यादा मन को मारकर यहां से लौट रहे है।

जिम्मेदारों के दावे

नगर निगम और प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि गार्डन को चरणबद्ध तरीके से पुनर्जीवित किया जा रहा है। फिलहाल संरचनाओं की मरम्मत और तकनीकी काम पूरे होने बाकी हैं। जल्द ही फव्वारे और रेस्टोरेंट शुरू कर दिए जाएंगे। पर्यटकों और शहरवासियों की उम्मीद है कि नेहरू गार्डन को पहले जैसी भव्यता और आकर्षण से सजाया जाए। फिलहाल स्थिति यह है कि यहां केवल नाव की सवारी और हरियाली का आनंद ही पर्यटकों को मिलता है। सवाल यह है कि जब तक सुविधाएं बहाल नहीं होतीं, क्या मौजूदा किराए को जायज ठहराया जा सकता है।

उम्मीदें बड़ी, हकीकत फीकी

उदयपुर की पहचान सिर्फ झीलों तक सीमित नहीं है, बल्कि इन झीलों के बीच बसे स्थलों पर भी टिकी है। फतहसागर झील के बीच स्थित नेहरू गार्डन कभी शहरवासियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करता था। चार साल के लंबे इंतजार के बाद इसे फिर से खोला गया, तो उम्मीदें बड़ी थीं। दावा किया गया कि इसमें नवाचार होंगे, सौंदर्य बढ़ेगा और पर्यटकों को नई सुविधाएं मिलेंगी। लेकिन आज की हकीकत इन दावों के बिल्कुल विपरीत है। फाउंटेन बंद पड़े हैं, जहाजनुमा रेस्टोरेंट ठप है और बच्चों या परिवारों के लिए कोई विशेष गतिविधि नहीं। गर्मी में फव्वारे बंद रहने से सुकून के बजाय असुविधा महसूस होती है। सवाल यह है कि जब सुविधाएं अधूरी हैं तो पर्यटकों से पूरा किराया क्यों वसूला जा रहा है?

पर्यटकों की नाराजगी जायज है। जब वे अन्य शहरों के पार्क और गार्डन देखते हैं, जहां आधुनिक तकनीक, थीम आधारित आकर्षण और मनोरंजन की सुविधाएं उपलब्ध हैं, तब नेहरू गार्डन की कमियां और ज्यादा खटकती हैं। सिर्फ नाव से पहुंचना और कुछ देर हरियाली में ठहरना पर्यटकों की उम्मीदों को पूरा नहीं करता। प्रशासन और प्रबंधन को चाहिए कि पर्यटकों हो होने वाली असुविधाओं को दुरुस्त कर आमजन को राहत दें ताकि यह स्थल अपने पुराने गौरव को वापस पा सके। साथ ही जब तक ये सेवाएं बहाल नहीं होतीं, तब तक किराए को वाजिब स्तर पर रखा जाएं। नेहरू गार्डन केवल उदयपुर की पहचान ही नहीं, बल्कि पर्यटन से जुड़े हजारों लोगों की आजीविका का हिस्सा भी है। इसे उपेक्षा की भेंट चढऩे देना शहर और पर्यटन दोनों के लिए नुकसानदेह होगा।

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