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जानिए आदर्श आचार संहिता के बारे में, कब से कब तक रहती हैं आचार संहिता और कैसे करनी होती हैं इसकी पालना

राजस्थान सहित पांच प्रदेशों में सोमवार को आदर्श आचार संहिता लागू हो गए। अब इन प्रदेशों में मुख्य चुनाव आयोग ​की सभी राजनैतिक पार्टियों पर पूर्ण रूप से नजर रहेगी। हांलाकि सभी प्रदेशों में अलग—अलग दिन मतदान होगा लेकिन मतगणना की तारीख एक ही होने से तीन दिसम्बर को यह पता चल जाएगा कि किस प्रदेश में कौनसी पार्टी सरकार बनेगी लेकिन इससे पहले हमे यह जानना बहुत जरूरी हैं आदर्श आचार संहिता होती क्या हैं और इसकी कैसे पालना करनी चाहिए। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग द्वारा कुछ नियम बनाए जाते है। इन नियमों को आचार संहिता कहते हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान सभी पार्टियों, नेताओं और सरकारों को इन नियमों का खासतोर पर पालन करना होता है।

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इन बिंदुओं से समझें आदर्श आचार संहिता के बारे में

  • चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है और नतीजे आने तक जारी रहती है
  • इसमें दिए दिशा-निर्देश को सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है।
  • आचार संहिता का मकसद चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष और साफ-सुथरा बनाना, सत्ताधारी राजनीतिक दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना हैं।
  • चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना भी आदर्श आचार संहिता के मकसदों में शामिल है।
  • आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए आचरण और व्यवहार का पैरामीटर माना जाता हैं।
  • आदर्श आचार संहिता किसी कानून के तहत नहीं बनी है। यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनी और विकसित हुई है।
  • सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के तहत बताया गया कि क्या करें और क्या न करें।
  • 1962 के लोकसभा आम चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया।1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसकी पालना करवाएं। तब से ही लगभग सभी चुनावों में आदर्श आचार संहिता का पालन होता है
  • चुनाव आयोग समय-समय पर आदर्श आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों से चर्चा करता रहता है, ताकि इसमें सुधार की प्रक्रिया बराबर चलती रहे।

 

चुनावों में अपनी बात वोटर्स तक पहुंचाने के लिए चुनाव सभाओं, जुलूसों, भाषणों, नारेबाजी और पोस्टरों का इस्तेमाल किया जाता है। इसी के मद्देनजर आदर्श आचार संहिता के तहत क्या करें और क्या न करें की एक लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है, लेकिन हम बात उन्हीं मुद्दों पर बात करेंगे, जो आदर्श आचार संहिता को इतना अहम बना देते है. आदर्श आचार संहिता में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के सामान्य आचरण के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं.
सबसे पहले तो आदर्श आचार संहिता लागू होते ही राज्य सरकार और प्रशासन पर कई तरह के अंकुश लग जाते हैं।

सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के तहत आ जाते है.
आदर्श आचार संहिता में रूलिंग पार्टी के लिए कुछ खास गाइडलाइंस दी गई हैं. इनमें सरकारी मशीनरी और सुविधाओं का उपयोग चुनाव के लिए न करने और मंत्रियों तथा अन्य अधिकारियों द्वारा अनुदानों, नई योजनाओं आदि का ऐलान करने की मनाही है।


मंत्रियों तथा सरकारी पदों पर तैनात लोगों को सरकारी दौरे में चुनाव प्रचार करने की इजाजत भी नहीं होती।
सरकारी पैसे का इस्तेमाल कर विज्ञापन जारी नहीं किए जा सकते हैं।

इनके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान किसी की प्राइवेट लाइफ का ज़िक्र करने और सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाली कोई अपील करने पर भी पाबंदी लगाई गई है.
अगर कोई सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी किसी राजनीतिक दल का पक्ष लेता है तो चुनाव आयोग को उसके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है।
इसके अलावा चुनावी सभाओं में अनुशासन और शिष्टाचार कायम रखने तथा जुलूस निकालने के लिए भी गाइडलाइंस बनाई गई है।

किसी उम्मीदवार या पार्टी को जुलूस निकालने या रैली और बैठक करने के लिए चुनाव आयोग से अनुमति लेनी पड़ती है और इसकी जानकारी निकटतम थाने में देनी होती है.
हैलीपैड, मीटिंग ग्राउंड, सरकारी बंगले, सरकारी गेस्ट हाउस जैसी सार्वजनिक जगहों पर कुछ उम्मीदवारों का कब्ज़ा नहीं होना चाहिए।
इन्हें सभी उम्मीदवारों को समान रूप से मुहैया कराना चाहिए. इन सारी कवायद का मकसद सत्ता के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाकर सभी उम्मीदवारों को बराबरी का मौका देना है।
चुनाव प्रचार के लिए धार्मिक स्थानों जेसे मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वाटा या अन्य पूजा स्थलों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए मंच के तोर पर नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, वोट हासिल करने के लिए जाति या सांप्रदायिक भावनाओं की अपील नहीं की जा सकती है।

आचार संहिता लागू हो जाने के बाद चुनाव के संचालन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी अधिकारियों/ कर्मचारियों के स्थानांतरण और पदस्थापन पर पूर्ण प्रतिबंध लग जाता है। यदि किसी अधिकारी का ट्रांसफट या प्रमोशन आवश्यक समझा जाता है, तो आयोग की अनुमति लेनी होती है।
लोकसभा चुनाव के दोरान आचार संहिता पूरे देश में लागू हो जाती है। विधानसभा चुनाव के दोटान राज्य स्तर पर आचार संहिता का पालन कटना होता है ओर उपचुनाव के कोड केवल संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के क्षेत्र में लागू होगा।

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