उदयपुर। हिंदू धर्म में मां दुर्गा की साधना करने के लिए चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है.
इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है, जिसके छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती हैं।
ऐसा माना जाता है कि मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से व्यक्ति को सुख-शांति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार माता रानी की चार भुजाओं में से एक भुजा में तलवार, दूसरे में पुष्प, तीसरा हाथ अभय मुद्रा में हैं वहीं चौथा हाथ वर मुद्रा में है.
कल के दिन जो भी भक्त विधि-विधान से पूजा करते हैं उनके घर से दरिद्रता भी दूर हो जाती हैं।
वहीं स्थानीय शक्तिपीठ में अब आपको रूबरू करवाते हैं। आशापुरा माताजी मंदिर के इतिहास से जो कि उदयपुर शहर के समीप ग्राम पंचायत बेडवास के एक पहाड़ी पर विराजित हैं।
आशापुरा माताजी मंदिर
आशापुरा माताजी का मंदिर बेडवास पंचायत की एक पहाडी पर स्थित हैं। कुछ सालो पहले ही मंदिर तक जाने के लिए सड़क निर्माण किया गया था।
उससे पहले सीढ़ियों और उससे पहले पगडंडी से भक्त मंदिर तक पहुंचते थे। मंदिर पहाडी पर स्थित होने से यहां से शहर के विहगम दृश्य को देखा जा सकता हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में यहां पर हजारों भक्त आते हैं।
इस मंदिर का निर्माण देवडा राजपूतों की और से करवाया गया। आशापुरा माताजी का मुख्य मंदिर नाडोल कस्बे में स्थित हैं। वहां से ज्योत लाकर यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया। वर्तमान में जहां मंदिर बना हुआ हैं।
पहले माताजी दूसरी पहाडी पर विराजमान थे लेकिन उसके बाद माताजी यहां पर आ गए और देवडा समाज के लोगों ने यहां पर भव्य मंदिर बना दिया। आशापुरा माताजी के प्रति हजारों भक्तों की आस्था हैं। बेडवास पंचायत के कई लोग प्रतिदिन यहां दर्शन के लिए आते हैं।