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उदयपुर में बांस की लकड़ी से बनने वाली वस्तुएं विदेश तक होती है एक्सपोर्ट, कामगारों की सरकार से आस, मशीने उपलब्ध करवाएगें तो काम करने में होगी आसानी

बांस की कलाकृति प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में लोकप्रिय शिल्पों में से एक है। बांस शिल्प की कलाकृतियां शहर और गांवो के साथ—साथ लगभग सभी घरों में किसी न किसी रूप में देखने को मिल जाती है, यह सुलभ, सरल एवं लोकप्रिय है। ऐसी ही शिल्प कलाओं की अलग—अलग वस्तुएं आपको देखने को मिलेगी उदयपुर शहर के देहली गेट के समीप संतोषमाता मंदिर क्षेत्र में, जहां स्थानीय महिलायें बांस से अलग—अलग वस्तुएं बनाने का काम करती हैं।

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नाथद्वारा में श्रीनाथजी को जिस बांस की टोकरी में लड्डू का प्रसाद चढ़ाया जाता है। वह भी इन्हीं महिलाओं के द्वारा तैयार की जाती हैं। यहां पर 400 से 500 महिलाएं रोजाना सुबह 5 बजे से काम कर लग जाती हैं और बांस की लकड़ियों से टोकरी सहित कई चीजें तैयार कर बाजार में बेचती हैं। उनका ये काम रात 11 बजे तक चलता है। इसी बीच महिलाएं अपने घर का भी कार्य करती है। यहां पर काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि यह उनका खानदानी व्यापार हैं। जो राजा-महाराजाओं के समय से चला आ रहा है, स्थानीय महिलाओं ने बताया कि घर में आई बहुएं भी इस काम में हाथ बटाती हैं।

खास बात यह है कि बांस से तैयार की गई वस्तुए देश के अलग—अलग कोने में भेजी जाती है साथ ही इनको विदेश में भी एक्सपोर्ट की जाती है। यहां महिलाएं बांस के काम का उपयोग और महत्व दोनों को बखूबी तरीके से जानती और पहचानती है, वे बांस के काम को प्रमुखता से करते हुूए अनेक उपयोगी एवं मनमोहक वस्तुएं तैयार करती है जैसे टोकरी, सूपा, चटाई, झाडू समेत अन्य रोजमर्रा में काम आने वाली घरेलू उपयोग की वस्तुओं को तैयार किया जाता है।

बसंती गांचा ने बताया कि इस व्यापार का प्रमुख सीज़न वैशाख और ज्येष्ठ माह होता हैं, इसके अलावा शादी के सीज़न में भी उनकी बिक्री होती हैं। बांस की लकड़ियों को असम राज्य से मंगवाया जाता हैं। 25 फीट के एक बांस की लकड़ी की कीमत 200 रु होती है। बांस की लकड़ियों से यहाँ टोकरिया, बच्चो के झूले, ​डिब्बे, जाफरी, लैंप शील्ड, चटाई, परदे, कुल्फी की डण्डिया, ट्री गार्ड, पंखे आदि चीजे बनाई जाती हैं।
वहा पर काम करने वाले रमेश गाँचा ने बताया कि बांस की चीजों को बनाते समय कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं। जैसे कि इस व्यापार का कोई लाइसेंस ना होने के कारण पुलिस वाले कई बार उन्हें

वहां पर काम नहीं करने देते है और जबरन उठा देते है इतनी दिक्कतों के बीच जैसे तैसे अपना काम घर में चालू रखते है। कई बार ऐसा भी होता है कि पुलिसकर्मी नशे में उनके साथ बदसलूकी करते है, कभी तराजू उठाकर ले जाते है तो कभी मारपीट करते है। व्यापारियों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें भी यह काम करने के लिए मशीनें उपलब्ध करवा दे ताकि उनका काम आसान हो जाए। बांस की एक टोकरी बनाने में 2 घंटे का समय लग जाता है साथ ही उनके हाथों में कई बार बांस की फांस घुस जाती हैं, इससे बहुत परेशानी होती है ऐसे में मशीन आने से उनकी बहुत सारी परेशानियां खत्म हो जाएगी।

 

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