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“हाल-ए-शहर” सैंडर ट्रैक की उम्मीदों पर मिट्टी : जहां एथलीट दौड़ने हैं, वहां मिट्टी के ढेर पर कुत्तों का डेरा और खौफ की रेस

खेल और खिलाडिय़ों को लेकर हम कितने संजीदा हैं, इसका नमूना इन दिनों ग्राउंड पर दिख रहा है। एथलीटों को सुविधा और विकास के जो ख्वाब दिखाए गए थे, असल तस्वीर उससे एकदम उलट है। हम बात कर रहे हैं एथलेटिक सैंडर ट्रैक की, जिसका काम पहले ही पड़ाव में बेपटरी है। हालात ये हैं कि खिलाड़ी ग्राउंड के दूसरे उधड़े हिस्सों में प्रेक्टिस कर रहे हैं और उनके लिए खींचे गए ट्रैक पर कुत्तों का डेरा है। ट्रैक के लिए जो मिट्टी-रेत डाली गई थी, उसे भी कुत्तों के झुंड जहां-तहां बिखेर रहे हैं।

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आम जन की परेशानियों और मुद्दों पर उदयपुर पत्रिका डॉट कॉम की सीरीज हाल-ए-शहर में जानिए और समझिए खिलाड़ियों का दर्द। आज गांधी ग्राउंड पर सैंडर ट्रैक का मुद्दा इसलिए, क्योंकि मानसून सिर पर है और समय रहते काम नहीं हुआ तो बारिश में मुश्किलें बढ़ना तय है। बताते चलें कि शहर के खिलाड़ियों के लिए यह सैंडर ट्रैक पर एक करोड़ 80 लाख रुपए खर्च कर बनाया जाना है। दावे ये हैं कि इससे 300 से 400 खिलाडिय़ों को फायदा मिलेगा।

 

लगातार शिकायतों के बाद उदयपुर पत्रिका डॉट कॉम  ने गांधी ग्राउंड का रुख किया। जिला खेल परिषद यानी खेल विभाग यहां सैंडर ट्रैक बनाने की तैयारी में है। इसके लिए जगह-जगह मिट्टी और रेत के ढेर लगाए हैं। जैसी कि शिकायत थी, वही सामने आई। कुछ कुत्ते इन ढेरों पर लोट रहे थे तो कुछ इन्हें पंजों से कुरेद और फैला रहे थे।


कुछ खिलाड़ी और वॉक के लिए आने वाले शहरवासी मिले। इन्होंने बताया कि सुबह-शाम के वक्त सबसे ज्यादा परेशानी होती है। दौड़ते या चलते वक्त कुत्तों के लपकने का डर बना रहता है। ट्रैक पर सुबह रनिंग करने आए असलम खान ने बताया कि शहर में गांधी ग्राउंड की अलग पहचान है। खिलाड़ियों की परेशानी तो जाहिर ही है, कई बार बच्चे गिरकर चोट खा रहे हैं। प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए।

क्या किसी बड़े समारोह का इंतजार है जिम्मेदारों को

यह मैदान खिलाडिय़ों के लिए सबसे बड़ी सुविधा तो है ही, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समेत कई बड़े राजनीतिक और धार्मिक समारोहों का भी गवाह रह चुका है। बदकिस्मती ये कि जब तक कोई बड़ा कार्यक्रम न हो, अफसर-प्रशासन इसकी सुध नहीं लेते। करीब दो महीने पहले ही यहां बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की सभा हुई थी। इससे पहले मैदान को ऐसा संवारा गया था कि मानो यह कभी बदहाल था ही नहीं। लेकिन जो कुछ बंदोबस्त किए गए, वे सब अस्थायी थे।

ग्राउंड पर आने वालों का कहना है कि इस मैदान की सूरत तभी संवरती है, जब यहां पर किसी राजनीति पार्टी या संगठन का ऐसा कोई कार्यक्रम हो, जिसमें हजारों लोगों को इकट्ठा करना हो। तब यहां प्रशासन से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं तक हर स्तर पर व्यवस्थाएं देखने के लिए न जाने कितने चक्कर लग जाते है। कार्यक्रम होते ही पूरा मैदान फिर अनदेखी का शिकार होने लगता है।

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