Udaipur Patrika

UDAIPUR PATRIKA

Breaking News
{"ticker_effect":"slide-h","autoplay":"true","speed":3000,"font_style":"normal"}

सांसद रावत की आपत्ति पर कक्षा 9 की पुस्तक से हटेंगे गलत तथ्य

अध्याय 4 में संत गोविंद गिरी के अलग भील राज्य बनाने के लिए प्रेरित होने के गलत तथ्य है अंकित 

Banner

उदयपुर। सांसद डॉ. मन्नालाल रावत ने राजस्थान राज्य पाठयपुस्तक मंडल द्वारा कक्षा 9 के लिए प्रकाशित पुस्तक में मानगढ़ धाम के संत गोविंद गिरी महाराज के अलग भील प्रदेश बनाने के लिए प्रेरित होने संबंधी गलत टिप्पणी प्रकाशित किए जाने को लेकर आपत्ति व्यक्त की और इस संबंध में एक सितम्बर को सांसद डॉ. रावत ने प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखा। मुख्यमंत्री कार्यालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए प्रारंभिक शिक्षा विभाग के पाठ्यक्रम में आवश्यक संशोधन के निर्देश जारी किए हैं।


पत्र में सांसद डॉ. रावत ने बताया कि कक्षा 9 की पुस्तक “राजस्थान का स्वतंत्रता आंदोलन एवं शौर्य परंपरा” के अध्याय 4 में पृष्ठ संख्या 42 पर लिखा है कि “सामंती एवं औपनिवेशिक सत्ता द्वारा उत्पीड़क व्यवहार ने गोविंदगिरी एवं उनके शिष्यों को सामंती व औपनिवेशिक दासता से मुक्ति प्राप्त करने के लिए भील राज्य की स्थापना की योजना बनाने की ओर प्रेरित किया।”

सांसद रावत ने मुख्यमंत्री को अवगत कराते हुए कहा कि पुस्तक में प्रकाशित उक्त कथन पूर्णतः तथ्यों से परे है। मूलतः यह आंदोलन राष्ट्रीय चेतना जागरण का आंदोलन था, जिसे संत गोविंद गिरी ने संप सभा का गठन कर अहिंसक तरीके से शुरू किया। वे तो अपने अनुयायियों के साथ पूर्णिमा के दिन मानगढ़ धाम पर हवन कर रहे थे। आदिवासी समाज के लोग वहां अपनी आस्था के अनुसार आहुति देने के लिए घी व श्रीफल लेकर पंहुचे थे। उसी दिन 17 नवंबर 1913 को अंग्रेजी सेना ने इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए क्रांतिकारियों का जघन्य नरसंहार किया। इस के बाद संत गोविंद गिरी को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास व उनके एक साथी पूंजा धीरा भील को कालेपानी की सजा सुनाई।

राजद्रोह का फर्जी मुकदमा दर्ज करने के लिए रिकॉर्ड में भील प्रदेश स्थापना की झूठी टिप्पणी लिखी

अंग्रेजों ने संत गोविंद गिरी के विरुद्ध राजद्रोह का फर्जी मुकदमा दर्ज करने के लिए इस घटनाक्रम में अपने रिकॉर्ड में झूठा तथ्य अंकित किया। औपनिवेशिक दृष्टि से भीलराज स्थापना की टिप्पणी जबरन लिखवाई। सांसद रावत ने पत्र में लिखा कि इस टिप्पणी को उल्लेखित पेरा के रूप में पढ़ाया जाना सकल राष्ट्रीय चेतना के विरुद्ध है। इसे अक्षरशः इसी रूप में नहीं लेना चाहिए। इस विषय पर विशेषज्ञों के शोधपत्रों एवं तथ्यों को लेते हुए पाठ्य पुस्तक में उक्त टिप्पणी को संशोधित किया जाना आवश्यक है।

Stay Connected

Share this post:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts
Don't Miss New Updates From Us
By subscribing to our WhatsApp updates, you'll be the first to know about important events and breaking news.
DON'T MISS NEW UPDATES FROM US
By subscribing to our WhatsApp updates, you'll be the first to know about important events and breaking news.