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डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने 300 साल बाद फिर प्राचीन परंपरा को किया पुनर्जीवित

उदयपुर। मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने मारवाड़ के पांच प्रमुख गांवों के राजपुरोहित समाज के प्रतिनिधियों को सम्मानित कर 300 साल बाद फिर प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित किया। डॉ. लक्ष्यराज सिंह के आमंत्रण पर मारवाड़ के घेनड़ी, पिलोवणी, वणदार, रूंगड़ी और शिवतलाव गांवों के राजपुरोहित समाज के प्रतिनिधि सिटी पैलेस आए, जिनका मेवाड़ी परंपरानुसार सम्मान किया। वहीं, राजपुरोहित समाज के इन प्रतिनिधियों ने डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ व उनके सुपुत्र हरितराज सिंह मेवाड़ को सम्मानित कर आभार व्यक्त किया। इस परंपरा के साथ ही मेवाड़ पूर्व राजपरिवार ने तीन सौ सालों से चली आ रही अबोला का विधिवत समापन कर प्राचीनकाल के रिश्तों की परंपरा को पुनर्जीवित किया।

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इसके लिए राजपुरोहित समाज के प्रतिनिधियों ने डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का आभार व्यक्त किया। राजपुरोहित समाज के प्रतिनिधियों ने डॉ. लक्ष्यराज सिंह के साथ प्राचीनकाल से 300 साल पूर्व तक चले आए रिश्तों को फिर से उसी प्रगाढ़ता के साथ पुनर्जीवित करने का कार्य किया। दोनों ने कहा कि अब राजपुरोहित समाज के इन गांवों के रिश्ते नई कहानी लिखेंगे और भावी पीढ़ियों की खाई खत्म करेंगे। इस दौरान दारा सिंह राजपुरोहित, राजेन्द्र सिंह राजपुरोहित, राजेन्द्र सिंह राजपुरोहित, जवान सिंह राजपुरोहित, देवी सिंह राजपुरोहित, सुखदेव सिंह राजपुरोहित, सेवानिवृत्त आई.ए.एस. श्याम सिंह राजपुरोहित, सरपंच नारायण सिंह राजपुरोहित, गणेश सिंह राजपुरोहित, रतन सिंह राजपुरोहित, डॉ. हनुवंत सिंह राजपुरोहित, पुष्यमित्रा राजपुरोहित आदि मौजूद थे।

परम्परा की शुरूआत होने से पांच गांवों में उत्साह का माहौल

सिटी पैलेस में उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन के बाद पाली जिले के घेनड़ी, पिलोवणी, वणदार, रूंगड़ी और शिवतलाव गांवों के राजपुरोहित समाज के प्रतिनिधि डॉ. लक्ष्यराज सिंह के आमंत्रण पर सिटी पैलेस आए, लेकिन शोक संतृप्तता के कारण परम्पराओं का निर्वहन नहीं किया गया था। अब दिवंगत अरविंद सिंह के निधन के सवा माह बीत जाने के बाद अब प्राचीन परम्पराओं का निर्वहन किया गया है।

पिलोवनी गांव से आए सेवानिवृत्त आईएएस श्याम सिंह राजपुरोहित ने बताया राजपुरोहित समाज की बहनें प्राचीनकाल से ही मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के लिए राखी भेजती आई हैं। कुछ कारण रहे इसलिए यह परंपरा 300 साल से टूटती आ रही थी। अब जो ​बीत गया उस पर शोक करने का मतलब नहीं है। अब आगे बढ़कर डॉ. लक्ष्यराज सिंह ने यह बहुत बड़ी पहल की है। अब ये रिश्ते बरकरार रहेंगे और प्राचीनकाल की तरह राखियां बहनें भेजती रहेंगी। इस परम्परा की शुरूआत का पता चला तो पांचों गांवों में अतिरिक्त उत्साह का माहौल है। इस रिश्ते की कहानी को हम गांव वाले नए सिरे से लिखने जा रहे है।

मेवाड़ पूर्व राजपरिवार और राजपुरोहितों के बीच प्राचीनकाल से रहे है प्रगाढ़ संबंध

महाराणा प्रताप के साथ हल्दीघाटी का युद्ध लड़ते हुए नारायण दास राजपुरोहित वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनकी वीरता और बलिदान के सम्मान में महाराणा ने उनके वंशजों को घेनड़ी, पिलोवणी, वणदार, रूंगड़ी और शिवतलाव गांव जागीर में दिए थे। वे कहते हैं कि हम राजपरिवार के सेनापति थे। हमने सेवाएं दी थीं। इसके बाद सदियों से उदयपुर सिटी पैलेस से गहरे संबंध रहे हैं। पूर्व में इन गांवों की बहन-बेटियां हर साल सिटी पैलेस में राखी भेजती थीं। इसके बदले में राजमहल से उनके लिए चूंदड़ी (परंपरागत चुनरी) भेजी जाती थी।

यह परंपरा लंबे समय तक चली। अचानक महल की ओर से चूंदड़ी भेजना बंद हो गया था। इसके बावजूद गांवों की बहन-बेटियों ने अगले तीन दशक तक राखी भेजना जारी रखा था। जब पैलेस की ओर से कोई जवाब नहीं आया, तब गांव की बहन-बेटियों ने एक दिन बुजुर्गों को इकट्ठा करके एक वचन मांगा था। उन्होंने कहा था- जब तक राजमहल से बुलावा नहीं आए, इन गांवों से कोई भी राजपुरोहित महलों में नहीं जाएगा। बुलावा नहीं आने पर ये परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो गई। अब डॉ. लक्ष्यराज सिंह ने इस प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित करने का काम किया है।

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