इस साल 17 मुहूर्त बचे, 2026 में फरवरी से शुरू होंगी शादियां और सालभर में रहेंगे 59 मुहूर्त
आज, 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी है। ज्योतिषी इस दिन को अबूझ मुहूर्त मानते हैं, इसलिए ये सीजन का पहला विवाह मुहूर्त होता है। देवउठनी एकादशी पर बिना मुहूर्त देखे भी शादी कर सकते हैं। पुराणों में लिखा है कि इस दिन तुलसी और भगवान शालग्राम का विवाह हुआ था। ये ही वजह है कि इस दिन से शादियों का सीजन भी शुरू हो जाता है।
माना जाता है भगवान विष्णु चार महीने योगनिद्रा में रहते है और इसी दिन जागते हैं, इसलिए इसे देव प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। गृह प्रवेश और बाकी मांगलिक काम भी इसी दिन से शुरू होते हैं।
इस साल नवंबर में 14 और दिसंबर में 3 मुहूर्त
2 नवंबर से शादियां शुरू होंगी और सीजन का आखिरी मुहूर्त 6 दिसंबर रहेगा। शुक्र ग्रह अस्त होने के कारण दिसंबर में ज्यादा मुहूर्त नहीं होंगे। आमतौर पर 15 दिसंबर तक तो शादियों के मुहूर्त रहते ही हैं। इसके बाद धनुर्मास शुरू हो जाता है। जिसमें शादियां नहीं होती।
2026 में शादियों के लिए कुल 59 दिन, जनवरी में एक भी मुहूर्त नहीं
हर साल 15 जनवरी को धनुर्मास खत्म होते ही शादियों के मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। इस बार शुक्र ग्रह अस्त होने के कारण जनवरी में शादी के लिए एक भी मुहूर्त नहीं होगा। हालांकि 23 जनवरी को वसंत पंचमी पर देश में कुछ जगह शादियां होंगी, क्योंकि परंपरा के अनुसार कुछ लोग इस दिन को भी शादी का बड़ा मुहूर्त मानते हैं।
ज्योतिषियों के अनुसार 2026 का पहला विवाह मुहूर्त 5 फरवरी को रहेगा। साल का आखिरी मुहूर्त 6 दिसंबर को होगा। सालभर में कुल 59 विवाह मुहूर्त रहेंगे।
अब बात करते हैं तुलसी विवाह और देव जागने की…
आज यानी कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन देव जगाने की परंपरा है। यानी पिछले चार महीने से योग निद्रा में सोए भगवान विष्णु को शंख बजाकर जगाया जाता है। दिनभर महापूजा चलती है और आरती होती है। शाम को शालग्राम रूप में भगवान विष्णु और तुलसी रूप में लक्ष्मी जी का विवाह होता है। घर और मंदिरों को सजाकर दीपक जलाए जाते हैं। तुलसी-शालग्राम विवाह नहीं करवा सकते तो सिर्फ इनकी पूजा भी कर सकते हैं।
इस त्योहार से जुड़ी पुराणों की दो कथाएं :
चार महीने पाताल में रहकर लौटते हैं भगवान विष्णु
वामन पुराण का कहना है कि सतयुग में भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन कदम जमीन दान में मांगी थी। फिर अपना कद बढ़ाकर दो कदम में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए जगह नहीं बची तो बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। सिर पर पैर रखते ही बलि पाताल में चले गए। भगवान ने खुश होकर उन्हें पाताल का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा। बलि ने कहा आप मेरे महल में रहिए, भगवान ने ये वरदान दे दिया, लेकिन लक्ष्मी जी ने बलि को भाई बनाया और विष्णु को वैकुंठ ले गईं। जिस दिन विष्णु-लक्ष्मी वैकुंठ गए उस दिन ये ही एकादशी थी।
वृंदा के श्राप से विष्णु बने पत्थर के शालग्राम
शिव पुराण के मुताबिक जालंधर नाम के राक्षस ने इंद्र को हराकर तीनों लोक जीत लिए। शिवजी ने उसे देवताओं का राज्य देने को कहा लेकिन वो नहीं माना।
शिवजी ने उससे युद्ध किया लेकिन उसके पास पत्नी वृंदा के सतीत्व की ताकत थी। इस कारण जालंधर को हराना मुश्किल था। तब विष्णु जी ने जालंधर का ही रूप लिया और वृंदा के साथ रहकर उसका सतीत्व तोड़ दिया। जिससे जालंधर मर गया। वृंदा को ये पता चला तो उन्होंने विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया। लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को श्राप से छुटाने के लिए वृंदा से विनती की। वृंदा ने विष्णु को हमेशा अपने पास रहने की शर्त पर मुक्ति दी और खुद सती हो गई। वृंदा की राख से जो पौधा बना ब्रह्माजी ने उसे तुलसी नाम दिया। विष्णु ने भी तुलसी को हमेशा शालग्राम रूप में साथ रहने का वरदान दिया। तब से तुलसी-शालग्राम विवाह की परंपरा चल रही है।




