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4 बार कैंसर को हराया, सेवा में ढूंढी खुशी, कार के बोनट पर लिख देती हैं मरीजों की पर्चियां

उदयपुर।  उदयपुर की न्यूरो फिजिशियन डॉ. रेणु खमेसरा ऐसी ही एक सशक्त नारी हैं। उनकी कहानी न सिर्फ भावुक करती है, बल्कि हर उस इंसान को जीवन का हौसला देती है, जो कठिन समय में हार मानने लगता है।

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इस सीरिज के पहले दिन हम आपको डॉ. रेणु खमेसरा की प्रेरणादायी जीवनगाथा से रूबरू करा रहे हैं, जिनका जीवन हमें यह सिखाता है कि असली शक्ति बाहरी रूप में नहीं, बल्कि आत्मबल और सेवा भाव में छुपी होती है।

“डॉ. रेणु खमेसरा ( न्यूरो फिजिशियन )”

शादी से पहले कैंसर, परिवार का बड़ा फैसला

साल 1994। डॉ. रेणु की शादी एक प्रतिष्ठित परिवार में तय हो चुकी थी। तभी डॉक्टरों ने उन्हें ओवेरियन कैंसर होने की पुष्टि की। घर में मातम छा गया, आंखों में आंसू और भविष्य को लेकर डर। लेकिन जिस वक्त परिवार टूट चुका था, उसी क्षण रेणु और मजबूत हो गईं। उन्होंने हिम्मत करके परिवार से कहा कि मैं जीऊंगी, सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उन सबके लिए जिन्हें मेरी जरूरत है। लेकिन मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, आपके लिए यही बेहतर होगा कि आप शादी कैंसिल कर दें। यह कहते हुए उन्होंने खुद विवाह से इंकार कर दिया। परिवार हैरान था, पर यही निर्णय उनकी जिंदगी का पहला बड़ा मोड़ बना। खास बात यह रही कि जिस परिवार में शादी तय हुई थी, वह बाद में भी हर सुख-दुख में उनके साथ खड़ा रहा।

इलाज और संघर्ष का अंतहीन सफर

पहली बार के बाद कैंसर का इलाज एक साल तक चला। दवाइयां, थैरेपी, ऑपरेशन और लगातार दर्द—ये सब उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया। लेकिन जैसे ही जीवन पटरी पर लौटने लगा, 1995 में कैंसर ने दोबारा दस्तक दी। फिर वही संघर्ष, वही डर, वही दर्द। करीब 7 साल बाद 2002 में तीसरी बार कैंसर ने उन्हें घेर लिया। हर बार का संघर्ष और कठिन था, क्योंकि शरीर बार-बार कमजोर होता गया। पर उनका आत्मबल और मजबूत होता चला गया। 2023 में चौथी बार कैंसर नए रूप में लौटा। इस बार उम्र और जिम्मेदारियां दोनों थीं। उन्होंने खुद से कहा कि अगर मैं गिर गई, तो मेरे जैसे और लोग हिम्मत कहां से पाएंगे? यही सोच उन्हें आज दूसरों के लिए प्रेरणा का प्रतीक बना देती है।

सेवा का दूसरा नाम : कार का बोनट बनी ओपीडी

डॉ. रेणु का मानना है कि मरीज का दर्द इंतजार नहीं कर सकता। एमबी हॉस्पिटल में जब वे देर रात तक ड्यूटी करतीं, तब कई बार मरीज उनके घर तक चले आते। कई बार हालात ऐसे होते कि वे अपनी कार के बोनट पर बैठकर ही घंटों मरीजों की पर्चियां लिखती रहतीं। वे कहती हैं कि अगर मरीज 7 दिन बाद भी नंबर का इंतजार करता रहा तो उसके दर्द की दवा कौन देगा? मेरा दरवाजा हमेशा खुला है, चाहे रात हो या दिन। इतना ही नहीं, वे मरीजों से एक रूपया तक फीस नहीं लेतीं। उनका सीधा सा जवाब है – पैसा किसके लिए जोडऩा है? जब वो (ईश्वर) मेरी धडक़न चला रहा है, इससे बड़ी फीस और क्या होगी।

पढ़ाई और सेवा का सफर

बीमारी के बीच भी उन्होंने अपने सपनों को मरने नहीं दिया। 2008 में उन्होंने पढ़ाई दोबारा शुरू की और 2010 में परीक्षा देने पंजाब गईं। जब वहां शिक्षकों ने उनके पढ़ाई में लंबे अंतराल का कारण पूछा और कैंसर की कहानी जानी तो सभी खड़े होकर उन्हें सलाम करने लगे। आज पानेरियों की मादड़ी और आसपास के इलाकों में लोग उन्हें सेवा का पर्याय मानते हैं। मरीज उनके पास सिर्फ इलाज के लिए नहीं आते, बल्कि अपने दुख-दर्द बांटने और हौसला पाने के लिए भी आते हैं।

समाज का सलाम

डॉ. रेणु खमेसरा के संघर्ष और सेवा भाव ने उन्हें एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार बना दिया है। सरकार से लेकर समाज तक, सबने उनके जज्बे को सलाम किया है। वे मानती हैं कि बीमारी शरीर को कमजोर कर सकती है, लेकिन आत्मबल और विश्वास को कभी नहीं तोड़ सकती। चार बार मौत को हराकर लोगों को जीना सिखाना, यही है डॉ. रेणु खमेसरा की सबसे बड़ी उपलब्धि। उनका जीवन यह संदेश देता है कि जब तक सांस है, तब तक संघर्ष है, और जब तक संघर्ष है, तब तक जीत भी संभव है।

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