मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने न्यायपालिका पर तंज कसा है। जयपुर में उन्होंने मीडिया से कहा कि ज्यूडिशियरी में भयंकर भ्रष्टाचार हो रहा है। कई वकील तो जजमेंट लिखकर ले जाते हैं, वही जजमेंट आता है। ज्यूडिशियरी के अंदर ये क्या हो रहा है? चाहे लोअर ज्यूडिशियरी हो या अपर। हालात गंभीर हैं। देशवासियों को सोचना चाहिए। चुनावी साल में मुख्यमंत्री के इस गहलोत के साथ उदयपुर में भी बहस छिड़ी है।
वजह ये है कि ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स समेत राष्ट्रीय जांच एजेंसियों के बाद अब देश की व्यवस्था के 3 में से सबसे प्रमुख न्यायपालिका को लेकर यह टिप्पणी है। द मेवाड़ पोस्ट ने इस मामले में उदयपुर के वरिष्ठ अधिवक्ताओं से बात की। किसी ने भी सीएम के बयान को सीधी सहमति नहीं दी। किसी ने इसे मुख्यमंत्री का निजी मत बताया तो किसी ने जिम्मेदार पद पर ऐसे बयान देने पर कोर्ट से ही स्वत: प्रसंज्ञान लेकर कार्रवाई की बात कही।
विधायक और कानून मंत्री के बीच आरोपों पर बोले थे सीएम- कई वकील जो लिखकर ले जाते हैं, वही जजमेंट आता है
जयपुर में मुख्यमंत्री का बयान भाजपा विधायक कैलाश मेघवाल द्वारा केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पर लगाए आरोपों को लेकर था। उन्होंने कहा कि विधायक मेघवाल सही हैं। मुझे मालूम पड़ा है कि उनके (अर्जुन राम मेघवाल) के समय बहुत बड़ा करप्शन हुआ था। उसे दबा दिया गया है। इन लोगों ने हाईकोर्ट से स्टे ले रखा है। इन्होंने किसी की परवाह ही नहीं की। हम तो कभी किसी के पीछे पड़ते नहीं हैं।
ज्यूडिशियरी, आरपीएससी, एसीबी में कभी इंटरफियर नहीं करता हूं। मैंने जीवन में कभी इन संस्थाओं के काम में हस्तक्षेप नहीं किया। न कभी करना चाहिए। हमने कई हाईकोर्ट जज बनवाने में मदद की होगी। उन सिफारिशों की कहीं वैल्यू हुई होगी। कई जज बन गए होंगे। जज बनने के बाद मैंने जिंदगी भर उन लोगों से बात नहीं की। मैं मेरी खुद की अप्रोच रखता हूं। आज से 25 साल पहले मुख्यमंत्री हाईकोर्ट जज बनाने की रिकमेंडेशन देते थे। वो जमाना भी हमने देखा है। हम भी सांसद थे, केंद्रीय मंत्री थे। कई सिफारिशें होती थीं। बता दें, विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और शाहपुरा (भीलवाड़ा) से भाजपा विधायक कैलाश मेघवाल ने अपनी ही पार्टी के केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को भ्रष्ट बताया था।
जब प्रदेश के मुखिया ही ऐसा कहेंगे तो आम लोग न्याय व्यवस्था पर विश्वास कैसे करेंगे?
किसी भी राज्य के प्रमुख या जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों द्वारा संवैधानिक व्यवस्था पर इस तरह प्रश्न चिह्न लगाना घातक और निंदनीय है। मेरा मानना है कि मुख्यमंत्री जिस तरह कुंठा में आकर लगातार इस तरह की बयानबाजी कर रहे, उन्हें बिना शर्त संवैधानिक सिस्टम से माफी मांगनी चाहिए। हमारी न्यायपालिका को भी ऐसे मामलों में स्वत: प्रसंज्ञान लेना चाहिए। क्योंकि इस देश के हर नागरिक में इस संविधान व्यवस्था के प्रति विश्वास होना चाहिए। यही सर्वोपरि है। मुख्यमंत्री ने बिना किसी आधार, तथ्य या सुबूत के न्याय पालिका पर सवाल उठाया है, जबकि उन्होंने इसी संविधान की शपथ लेकर यह पद ग्रहण किया था- रामकृपा शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, बार एसोसिएशन, उदयपुर
मुख्यमंत्री को तथ्यात्मक जानकारी होने पर ही ऐसा कुछ कहना चाहिए। वे आम आदमी तो नहीं हैं। उन्हें अगर ऐसा लगता है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है तो वे खुद कार्रवाई में सक्षम हैं। ऐसी बयानबाजी ठीक नहीं है। वैसे आज दूसरे संवैधानिक संस्थाओं पर ऐसे सवाल उठने लगे हैं, जैसे यह सब व्यवस्था का हिस्सा हो गया है। इन सबके बावजूद मुझे लगता है कि जिम्मेदार पद पर होने के बावजूद मुख्यमंत्री ने जो बयान दिया है, वह सस्ती लोकप्रियता जुटाने के लिए ही दिया है- राजेश सिंघवी, वरिष्ठ अधिवक्ता
यह मुख्यमंत्री का अपना मत हो सकता है। वरना लोकतंत्र के तीनों स्तंभ- विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका तीनों अपनी जगह बहुत मजबूत हैं। इन्हीं तीनों के योग से देश आगे बढ़ रहा है। मेरा मानना है कि तीनों स्तंभ अपने तरीके से बेहतर काम कर रहे हैं। सीएम ने ऐसा बयान क्यों दिया, इसके पीछे सोच और कारण तो वही बेहतर बता सकते हैं। वे इस प्रदेश के प्रथम नागरिक हैं और इसके मालिक भी हैं। वे जो भी अपनी बात कहते होंगे, उसमें उनका कोई मंतव्य रहा होगा- मनीष श्रीमाली, वरिष्ठ अधिवक्ता
मुख्यमंत्री ने इस बयान से पूरी न्यायपालिका पर धब्बा और दाग लगाया है। उन्हें ऐसा कोई भी बयान जारी करने से पहले तथ्य और प्रमाण सामने रखने चाहिए, तभी जनता को भी विश्वास होगा। मेरा मानना है कि बिना किसी आधार के ऐसी बात कहना न्यायपालिका पर दाग लगाने जैसा है- मनीष शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, बार एसोसिएशन, उदयपुर
अगर मुख्यमंत्री के बयान में सचाई है तो स्थिति बेहद चिंताजनक है। ऐसे में ज्यूडिशियरी को अपने गिरेबान में देखना चाहिए और यदि कुछ गलत है तो इसमें सुधार करना चाहिए। ताकि आमजन में न्यायपालिका के प्रति विश्वास बना रहे।
अरुण व्यास, वरिष्ठ अधिवक्ता
इधर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष जोशी ने कहा गहलोत को संविधान व न्यायपालिका पर विश्वास नहीं
न्यायपालिका व वकीलों को लेकर दिए बयान को लेकर भाजपा ने मुख्यमंत्री पर पलटवार किया है। प्रदेशाध्यक्ष सी.पी. जोशी ने कहा कि गहलोत का यह बयान उनकी हताशा व निराशा को दर्शाता है। उन्होंने कहा- संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का न्यायपालिका पर इस तरह का बयान यह दर्शाता है कि संविधान और देश की न्याय व्यवस्था में इनका कोई विश्वास नहीं है, क्योंकि यह प्रदेश की कानून व्यवस्था को संभालने में पूर्ण रूप से विफल रहे हैं। आप कहते हैं कि संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं, जबकि आप संवैधानिक पद पर बैठे हैं और न्याय व्यवस्था पर प्रश्न उठा रहे हैं।
बीसीआर के पूर्व उपाध्यक्ष ने मुख्य न्यायाधीश को लिखा पत्र
सीएम के इस बयान के बाद प्रदेश में अब वकील भी उनके खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। बीसीआर के पूर्व उपाध्यक्ष योगेन्द्र सिंह तंवर ने इसे लेकर राजस्थान हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को शिकायती पत्र लिखा है। उन्होंने लिखा- गहलोत ने न्यायपालिका पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए सार्वजनिक रूप से बयान दिया है, इससे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। ये अपमानजनक टिप्पणियां न केवल न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि कानूनी प्रणाली के सुचारू कामकाज में भी बाधा डालती हैं। उन्होंने आग्रह किया कि मुख्य न्यायाधीश इस पत्र को आपराधिक शिकायत के रूप में दर्ज करते हुए मामले में प्रसंज्ञान लेंवे।