उदयपुर। राष्ट्रसंत ललितप्रभ महाराज ने कहा कि बी पॉजिटिव नो नेगेटिव वाला सिद्धांत अगर जीवन में अपनाएं तो हम काफी सारी परेशानियों से बच जाएंगे। जीवन का विकास और समस्याओं का समाधान बड़ी और सकारात्मक सोच पर ही निर्भर होता है। उन्होंने कहा कि जीवन एक सांप सीढ़ी के खेल की तरह है। इस खेल में जिस तरह से हम कई बार ऊपर चढ़ते हैं तो नीचे भी आ जाते हैं उसी तरह जीवन चक्र में भी ऊपर नीचे होना लगा रहता है। हमारी सोच का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
वे नगर प्रांगण में चल रहे ललितप्रभ-चंद्रपप्रभ महाराज की प्रवचन श्रृंखला में बुधवार को सोच को कैसे बनाएं पॉजिटिव और पावरफुल विषय पर ललितप्रभ जी महाराज ने उपस्थित श्रावकों को जीवन में सकारात्मक और बड़ी सोच रखने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि हम चाहे तो सोच को बिगाड़ सकते हैं और चाहे तो संवार भी सकते हैं। उन्होंने एक युवक की प्रतीकात्मक कहानी सुनाते हुए कहा कि हम जैसा सोचते हैं कई बार हमारे सामने वही दृश्य उपस्थित हो जाता है। हम अच्छी सोच रखेंगे तो अच्छा होगा और बुरी सोच रखेंगे तो बुरा ही होगा। जैसा इंसान के मन में होता है अक्सर वही घटित होता है। जिस इंसान के भीतर जैसी सोच होगी उसका आभा मंडल भी वैसा ही होगा। अच्छी सोच खुशी की झलक पैदा करती हैं जबकि बुरी सोच दुख का कारण बनती है। इसके जिम्मेदार हम स्वयं ही हैं।
राष्ट्रसंत ने कहा कि आज जो कुछ भी हो रहा है उसके बीज कभी हमने ही बोये थे। आज मकान भले ही बड़े हो गए हैं लेकिन व्यक्ति की सोच बहुत छोटी हो गई है। अगर सोच बड़ी हो तो छोटे मकान में भी हम एक साथ बैठकर भोजन कर सकते हैं। बड़ी सोच का बड़ा जादू होता है। पांव में पड़ी मोच और दिमाग की छोटी सोच हमेशा जीवन को आगे बढ़ने से रोकती है। जीवन में घटने वाली अच्छी बुरी घटनाओं के उत्तरदाई हमारी सोच ही है। दिमाग हमें प्रकृति के घर से मिला एक अद्भुत उपहार है। इसलिए दिमाग को साफ और स्वच्छ रखना बहुत जरूरी है। इसे बड़ा बनाने की जरूरत है। हमारी छोटी सोच से परिवार तक टूट जाते हैं।
समस्याएं चाहे कितनी भी खड़ी हो सब का समाधान हो जाएगा अगर सोच बड़ी हो। पहले मैं मैन हूं उसके बाद जेन हूं इसी बड़ी सोच से इंसान महान बनता है। दुश्मन के प्रति भी सोच हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए। कभी यह न सोचें के मां-बाप के लिए हमने क्या किया बल्कि यह सोच रखें कि मां-बाप ने हमारे लिए कितना कुछ किया। रावण के दस सिर थे लेकिन नजर उसकी एक पर ही थी लेकिन आज लोगों के सिर एक है लेकिन नजर दस पर रहती है। इसलिए बुरी सोच को छोड़ो और सकारात्मक बनने की कोशिश करो इसी में जीवन की सार्थकता है।
पुरानी सोच और पुराने ख्याल दिमाग से निकाल दो और नया सोचो। बड़ी सोच उसी तरह रखनी चाहिए जिस तरह से आधा गिलास खाली नहीं आधा गिलास भरा हुआ है। बड़ी और सकारात्मक सोच से घर स्वर्ग बन जाता है।
सभा के प्रारंभ में चंद्रप्रभ जी महाराज ने सभी को जीवन में सकारात्मक बनने का उपदेश देते हुए मंगल गान कराया। डॉ.शांतिप्रिय सागर महाराज ने भी श्रावकों के मन में भक्ति शक्ति की उर्जा पैदा करते हुए मंगल गान किया। दीप प्रज्वलन चातुर्मास संयोजक हंसराज चौधरी अनिल नाहर एवं अतिथियों द्वारा किया गया।