संयुक्त राष्ट्र संघ ने पूरे विश्व को 2030 तक सतत् विकास का लक्ष्य दिया और यदि ऐसा हुआ तो पूरी सृष्टि में पर्यावरण, स्वास्थ्य, ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे प्रभावों पर आमूलचुल परिवर्तन आ जायेंगे। मानव एवं प्रकृति केन्द्रित विकास से ही राष्ट्र का निर्माण संभव है। आज अर्थ केन्द्रित विकास की जगह मानव केन्द्रित विकास वर्तमान समय की आवश्यकता है। सतत् विकास ही देश की उन्नति का मुख्य आधार है।
सुदूर गांव में रह रहे व्यक्ति को देश की मुख्य धारा से जोड़ना होगा। उक्त विचार उक्त विचार गुरूवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के 58वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कही। प्रो. सारंगदेवोत ने सभी संकल्प दिलवाया कि हम जो भी करे सृष्टि व मानव जाति कि लिए करें, हमारे क्रियाकलाप से प्रकृति, जीव जंतु को कोई हानि नहीं हो और ऐसा करके ही हम आगे बढे़ेगे तो यही हमारा विकास कहलायेगा।
हमारी विचारधारा को बदलनी होगी। हमारे रिसर्च, लर्निंग व मेथोलॉजी है उसकेा बदला होगा। इन सभी के लिए हमें हमारे अध्यात्मिक, सनातन मूल्यों को मजबूत करना होगा, संसार परिवर्तनशील है इस परिवर्तनशीलता में कुछ चीज ऐसी है जो शास्वत है परम्परा है। शास्वत मूल्यों को हम हमेशा जिंदा रखे, क्योकि शास्वत मूल्य कभी परिवर्तित नहीं होते और वो हमारे सिद्धांत।
उन्होंने कहा कि संस्थापक मनीषी पंडित जनार्दनराय नागर के अनुसार राष्ट्र निर्माण के जिम्मेदार शिक्षकों को मानते हुए वे चाहते थे कि यहॉ से शिक्षा ग्रहण कर लोकमान्य शिक्षक तैयार हों, जो सभी को मान्य हो इसी सोच को ध्यान में रखते हुए 03 अगस्त, 1966 को 80 विधार्थियों के साथ लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की स्थापना की, जहॉ वर्तमान में 2500 विधार्थी प्रतिवर्ष प्रशिक्षण लेकर इस महाविद्यालय से निकल कर अपने जीवन के पथ की नयी शुरूआत कर रहे हैं और शत प्रतिशत विधार्थी सरकारी या गैर सरकारी उद्यमों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
आज का भावी शिक्षक लोकमान्य, कर्तव्यनिष्ठ एवं पूंजीवाद से दूर समाज निर्माण में मार्गदर्शन के रूप में प्रशिक्षित होकर समाज का निर्माण राष्ट्र हित में करे तथा छात्र को रचनात्मक भूमिका का निर्वाह करना चाहिए, जिससे अपनी संस्था के मूल्यों की रक्षा करते हुए देश तथा समाज निर्माण में आगे आयें। आईटी के युग में शिक्षकों व विधार्थियों को हर समय अपडेट रहना होगा क्योंकि आने वाले समय में 70 से 90 प्रतिशत जॉब विलुप्त हो जायेगी, जिसके कारण जो समय के साथ अपने आप को अपडेट रखेगा वही मार्केट में टिक पायेगा।
परिवर्तन ही जीवन है इसलिए गुणवत्ता के साथ गति भी बढ़ानी होगी। शिक्षा से ही संस्कार व जीवन मूल्यों का निर्माण होता है, आज सर्वोच्च जो शिखर पर हैं उनका कार्य भावी पीढी में संस्कार के भाव पैदा करना। विद्यालय ही ऐसा मंदिर है जहॉ से देश की दिशा तय करने वाली भावी पीढी तैयार होती है। शिक्षा को संस्कार एवं जीवन मूल्यों से जोडे। विश्व मंच पर युवाओं को स्थापित करने के लिए शिक्षा के साथ साथ भारतीय संस्कृति, संस्कार, नैतिकता तथा जीवन मूल्यों को अपनाना होगा। युवाओं की उर्जा एवं सोच के बिना देश का विकास संभव नहीं है।
आज समय आ गया है कि शिक्षा का भारतीयकरण आवश्यक है। आज की युवा पीढी को वेद एवं पुराण की जानकारी देनी होगी जिससे युवा भारतीय संस्कृति से जुड़ सकें। भावी पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के संस्कार बचपन से ही मिले इसका जिम्मा अभिभावक व शिक्षकों का है। प्रारंभ में प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान की 1966 से लेकर 2023 तक की विकास यात्रा से रूबरू कराया। संचालन डॉ. हरीश चौबीसा ने किया जबकि आभार डॉ. रचना राठौड़ ने दिया।
समारोह में डॉ. बलिदान जैन, डॉ. अमी राठोड, सुनिता मुर्डिया, डॉ. रेणु हिंगण, डॉ. अमित दवे, डॉ. रोमा भंसाली, डॉ. ममता कुमावत, डॉ. हिम्मत सिंह चुण्डावत, डा. रोहित कुमावत, डॉ. इंदू आचार्य, डॉ. ममता कुमावत, डॉ. तिलकेश आमेटा सहित अकादमिक, गैर अकादमिक कार्यकर्ता एवं विधार्थी उपस्थित थे।