प्रदेश में विधानसभा चुनाव करीब हैं और उदयपुर में कांग्रेस के हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे। दो दिन पहले शहर अध्यक्ष फतहसिंह राठौड़ के पद ग्रहण समारोह पूर्व प्रदेश सचिव और शहर जिला के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष शराफत खान ने एकजुटता की कमी का जो दर्द उठाया था, वह बुधवार को फिर सामने आ गया।
नए जिलाध्यक्षों की कोशिशों के बावजूद मणिपुर घटनाक्रम के खिलाफ केंद्रीय नेतृत्व के आह्वान पर प्रदर्शन में गिनती के चेहरे दिखे। शहर और देहात ने अलग-अलग पदयात्राएं निकालीं। हैरान करने वाली बात ये थी कि दोनों में बमुश्किल 200 कार्यकर्ता-पदाधिकारी भी नहीं थे, जबकि रविवार को शहर अध्यक्ष राठौड़ के पद ग्रहण में 1000 कार्यकर्ता जुटाने का दावा किया गया था।
मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई हिंसा के विरोध में यहां शहर और देहात कांग्रेस की ओर से केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया गया। यह दोनों नए जिलाध्यक्षों के लिए भी पहला ही टास्क था, जिसमें उनके लिए भीड़ जुटाने की चुनौती थी। प्रदर्शन में वही चेहरे दिखे, जो अक्सर पार्टी की गतिविधियों में दिखते रहे हैं। इनमें कांग्रेस स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य और पूर्व सांसद रघुवीर सिंह मीणा, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास, संभाग प्रभारी रतन देवासी, पूर्व विधायक त्रिलोक पूर्बिया, वल्लभनगर विधायक प्रीति शक्तावत, पूर्व देहात अध्यक्ष लाल सिंह झाला, श्रम कल्याण बोर्ड उपाध्यक्ष जगदीश राज श्रीमाली, सुरेश श्रीमाली, ख्यालीलाल सुहालका, पंकज शर्मा, राजीव सुहालका, अजय सिंह, हरीश शर्मा, सीमा पंचोली, नजमा मेवाफरोश, टीटू सुथार आदि शामिल थे।
पदाधिकारियों ने कलेक्ट्रेट पर नारेबाजी की। नारों में केंद्र सरकार और मणिपुर सरकार के प्रति आक्रोश जताया। फिर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिए। इससे पहले शहर जिलाध्यक्ष फतह सिंह राठौड़ के नेतृत्व में कार्यकर्ता देहलीगेट स्थित शांति आनंदी स्मारक से रवाना हुए। फिर शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए कलेक्ट्री पहुंचे। दूसरी ओर, देहात कांग्रेस के कार्यकर्ता भी कार्यालय से रवाना होकर सूरजपोल होते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचे।
चर्चा में रही इनकी गैरमौजूदगी
पूर्व मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास, और पूर्व शहर अध्यक्ष गोपाल कृष्ण शर्मा देहलीगेट पहुंचे, लेकिन पदयात्रा के रवाना होते ही लौट भी गए। इधर, पार्षद शादाब हुसैन, हिदायतुल्लाह खान, चमन आरा, शहनाज अयूब, अली सनवाड़ी, गिरीश भारती जैसे चेहरे गायब ही थे। ये सभी कांग्रेस के टिकट पर जीते पार्षद हैं। मनोनीत पार्षद रवीन्द्र पाल सिंह कप्पू, बतुल हबीब बोहरा जैसे चेहरे भी प्रदर्शन में नहीं दिखे।
दो दिन पहले खान ने कहा था- पार्टी की हालत अपना स्थान पक्का-बाकी खाएं धक्का जैसी नए शहर अध्यक्ष राठौड़ का पद ग्रहण समारोह रविवार को रेजीडेंसी स्कूल में हुआ था। इसमें खुद पदाधिकारियों ने एक हजार कार्यकर्ता जुटाने का दावा किया था। मंच पर पूर्व सांसद और कांग्रेस स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य रघुवीर, पूर्व केंद्रीय मंत्री गिरिजा, श्रम कल्याण बोर्ड उपाध्यक्ष श्रीमाली, शहर विधानसभा सीट से प्रत्याशी रहे दिनेश श्रीमाली समेत कई बड़े पदाधिकारी थे।
बतौर अतिथि आए पूर्व प्रदेश सचिव और शहर जिला के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष शराफत खान ने उदयपुर में एकजुटता को चुनौती बताया था। खान ने यहां तक कहा था कि पार्टी की हालत अपना स्थान पक्का-बाकी खाएं धक्का जैसी है। प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व को भी परवाह नहीं है। कार्यकर्ताओं की सुनी ही नहीं जाती। पार्टी गुटों में बंटी है। कार्यकर्ताओं को तो पता ही नहीं चलता कि कहां क्या हो रहा है।
नजरिया : नए अध्यक्षो! स्वागत… चुनौतियां तो हैं, स्वीकारिए और इसके साथ दूर कीजिए जीत सूखा
देर आए, दुरुस्त आए। कांग्रेस ने 3 साल बाद ही सही, नए जिलाध्यक्ष तो दिए। मानेसर घटनाक्रम के बाद से तो उदयपुर में यह बड़ी पार्टी तो मानो नेतृत्वहीन ही थी! प्रदेश से निर्देश पर धरने-प्रदर्शन होते रहे हैं, लेकिन कहने भर के लिए। वजह वह टीस, जिसका जिक्र पूर्व प्रदेश सचिव और शहर जिला के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष शराफत खान ने दो दिन पहले किया था। खान की बात सही भी है, क्योंकि टर्म पूरा करने जा रही कांग्रेस सरकार 4 साल बाद भी न तो नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष चुन पाई है, न यूआईटी को अध्यक्ष दे सकी है।
ऐसे में निगम में कांग्रेस पार्षद कहने भर के विपक्ष हैं। इनका नेतृत्व नहीं होने से मुद्दों-समस्याओं की मजबूती से पैरवी नहीं हो पाती। अकसर विपक्षी पार्षदों की आवाज ही दब जाती है। गुटों को देखकर कहीं न कहीं यह भी महसूस होता है कि केंद्रीय नेतृत्व की तरह यहां भी पार्टी पूजा नहीं, व्यक्ति पूजा हावी है। एक गुट कोई पहल करे तो दूसरा दिलचस्पी नहीं दिखाता और दूसरा कुछ कहे तो तीसरा नहीं सुनता। कार्यकर्ता तो इन्हीं गुटों में बंटे हैं। शायद इसीलिए शहर में कांग्रेस 25 साल से नहीं जीती।
जब नायक ही तीर-मीर हैं, सेना कैसे किसी एक दिशा में जा सकती है! बहरहाल, नए जिला अध्यक्षों को पद मिलने की शुभकामनाएं। इनसे तो यही उम्मीद है कि जो विश्वास नेतृत्व ने जताया है, उस पर खतरा उतरेंगे। बस इन्हें भी गुटबाजी, बिखराव की चुनौतियां स्वीकार करने के साथ इसका समाधान ढूंढना होगा। वह भी समय रहते, क्योंकि चुनाव इसी साल होने हैं और वक्त रेत की तरह मुट्ठी से फिसला जा रहा है।