क्या आपको पता है कि भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमार हैं। पूर्णिमा पर रविवार को हुई स्नान यात्रा से वह रुग्ण हो गए थे। नौतपा की तपिश से बचाने के लिए पुजारी-सेवादारों ने ठंडे पानी-दूध से उनका अभिषेक किया था। अब उन्हें काढ़े के साथ गरम तासीर वाली औषधियां दी जा रही हैं ताकि ठाकुरजी जल्दी से वापस स्वस्थ हो जाएं।
मान्यता के अनुसार शहर के जगदीश मंदिर और सेक्टर-7 के जगन्नाथ धाम में अगले 15 दिन तक ठाकुरजी की यही सेवा होगी। फिर आषाढ़ी बीज पर 20 जून को रथयात्रा निकाली जाएगी। इसमें जगन्नाथ स्वामी भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर नगर भ्रमण कर अपने वापस स्वस्थ होने का संदेश और सबको आशीर्वाद देंगे। बता दें, देव प्रतिमाओं को बाल स्वरूप माना गया है। यही वजह है कि मंदिरों में इन प्रतिमाओं-विग्रहों की ठीक वैसे ही सेवा-पूजा की जाती है, जैसे घरों में बच्चों की देखभाल की जाती है।
पुरी जैसे हमारे जगदीश, वही सौम्य मूर्ति और आयुधों वाले चतुर्भुज स्वरूप
उदयपुर का जगदीश मंदिर 372 साल पुराना है। सन 1651 में इसे महाराणा जगत सिंह ने बनवाया था। महाराणा जगत सिंह की जगन्नाथ मंदिर, पुरी (ओडिशा) के प्रति अगाध आस्था थे। वे समर्थ थे कि जब चाहें, वहां जाकर प्रभु के दर्शन कर सकें। मेवाड़ वासियों को ठाकुरजी के उसी स्वरूप के दर्शन करवाने के लिए उन्होंने उदयपुर में मंदिर बनवाया। इसमें ठाकुरजी के चतुर्भुज स्वरूप वाली सौम्य छवि वाली प्रतिमा स्थापित की।
प्रतिमा के चारों हाथों में भगवान विष्णु की तरह शंख, चक्र, गदा और पद्म हैं। मंदिर की स्थापना से लेकर अब तक पुरी की तरह हर साल रथयात्रा निकाली जाती रही है। कुछ दशक पहले तक यह सब निज मंदिर में पारंपरिक रथ में ही किया जाता रहा। फिर पूरे शहर को इस उत्सव का भागीदार बनाने के लिए ठाकुरजी को नगर भ्रमण करवाना शुरू किया गया। ठाकुरजी का रजत रथ सैकड़ों किलो चांदी से बना है। इसमें ठाकुरजी की काष्ठ प्रतिमा विराजित की जाती है, जो हू-ब-हू मूल प्रतिमा जैसी है।