उदयपुर। यह कहानी केवल एक लडक़ी की सफलता की नहीं है, बल्कि हर उस पिता की जीत है, जिसने कठिन परिस्थितियों में भी बेटियों की पढ़ाई का सपना देखा। बेड़वास, प्रतापनगर की सोनल शर्मा दूध बेचने वाले साधारण परिवार की बेटी हैं। लेकिन आज वही बेटी अपनी लगन और अनुशासन से राजस्थान न्यायिक सेवा (आरजेएस) में जज बनकर लाखों युवाओं की प्रेरणा बन चुकी है। कल तक उनके पिता ख्यालीलाल शर्मा की पहचान केवल एक दूधिये की थी। लेकिन आज लोग उन्हें गर्व से जज सोनल शर्मा के पिता कहकर पुकारते हैं। उनकी आंखें खुशी से भर आती हैं जब वे कहते हैं— सोनल जैसी बेटी हर माता-पिता को मिले, जिसने कभी किसी चीज की डिमांड नहीं की, बस पढ़ाई और मेहनत को ही अपनी पूजा बनाया।

“जज सोनल शर्मा “
इन दिनों सोनल शर्मा सिरोही में अतिरिक्त सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत है। मने सोनल शर्मा ने संपर्क किया तो उन्होंने अपने पापा से बात करने को कहा। उनके इस मौन प्रतिउत्तर में ये भाव छूपा था कि मेरे पिता ही मेरे भगवान है, मेरे आदर्श है और पहले गुरू है, अब भला मैं अपनी सफलता का क्या ही बखान करूं। फिर हमने पिता से बातचीत की। बात शुरू होती उससे पहले पिता दो बार रोने लगे। बोले- मेरी बेटियों ने पढऩे के नाम पर बहुत ही संघर्ष झेला है। लेकिन सोनल और उनकी बड़ी बहन पर गौ माता का इतना आशीर्वाद है कि उसने जो ठाना वो करने मानी। आइये उनके पिता ने जो कहा वो सुनाते है आपको..
संघर्षों का आसरा और सादगी का सहारा
सोनल का बचपन साधारण था। घर में पढ़ाई के लिए कुर्सी-टेबल तक नहीं थी। गायों की गौशाला में ही लोहे के पीपे पर पढ़ाई करती। उसी पर बैठकर घंटों पढ़तीं और फिर पिता के साथ डेयरी का काम संभालतीं। छुट्टियों में जब भी घर आतीं, तो सबसे पहले गायों के तबेले में जातीं। गोबर उठाना, दूध निकालना, चारा डालना और यहां तक कि दूध पहुंचाने के लिए साइकिल चलाकर मोहल्लों तक जाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा रहा। आज भी यह सादगी उनकी पहचान है। लोग कहते हैं कि जज बनने के बाद भी सोनल वही पुरानी सोनल है, जो कामयाबी के बावजूद जमीन से जुड़ी रही।

शिक्षा की राह : अनुशासन और तपस्या
सोनल ने केंद्रीय विद्यालय से पढ़ाई की और गणित में 98 प्रतिशत अंकों तक हासिल किए। बाद में उन्होंने एमएलएसयू से एलएलबी में दाखिला लिया। परिवार को उम्मीद थी कि बेटी वकील बनेगी। लेकिन सोनल का सपना इससे भी बड़ा था। कॉलेज में जब उनकी मुलाकात न्यायाधीशों से हुई, तब उनके मन में जज बनने की प्रेरणा जागी। उन्होंने खुद से ठान लिया था कि अब मेरा मुकाम केवल वकालत नहीं, बल्कि न्याय की कुर्सी है। परिणाम स्वरूप एलएलबी में विश्वविद्यालय टॉपर बनीं, गोल्ड मेडल जीता। फिर एलएलएम में भी टॉप कर दूसरा गोल्ड मेडल और चांसलर अवार्ड हासिल किया। वह विश्वविद्यालय की पहली छात्रा बनीं जिसने एक साथ दोनों परीक्षाओं में यह उपलब्धि पाई।
लाइब्रेरी के बाहर से भीतर तक
आर्थिक सीमाओं और सामाजिक झिझक ने शुरुआत में सोनल को विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी के बाहर बैठकर पढ़ाई करने पर मजबूर किया। उन्हें नियम नहीं पता थे। लेकिन उनकी लगन देखकर किसी ने हिम्मत दी और वह अंदर चली गईं। उस दिन से लेकर परीक्षा तक सोनल घंटों लाइब्रेरी में पढ़तीं। उनकी लगन देखकर लाइब्रेरियन ने आदेश जारी कर लाइब्रेरी का समय सुबह 8 से रात 8 तक बढ़ा दिया। शाम 8 बजे बाद पिता साइकिल से उन्हें लेने आते। घर पहुंचने पर भी वह आराम नहीं करतीं—पहले गायों की देखभाल और फिर पढ़ाई।

बिना कोचिंग, केवल मेहनत से सफलता
सोनल ने कभी कोचिंग नहीं की। एक बार दाखिले के लिए गईं तो आर्थिक स्थिति के कारण संस्थान ने प्रवेश से मना कर दिया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी मेहनत, आत्मविश्वास और ईमानदार अध्ययन से ही तैयारी करती रहीं। पहले प्रयास में वह मात्र 2 अंकों से रह गईं। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। 24 दिसंबर 2020 को खबर आई— सोनल का चयन हो गया। उस क्षण का दृश्य आज भी परिवार की आंखों में ताजा है। ख्यालीलाल बताते हैं कि हम सब गौशाला में काम कर रहे थे, तभी खबर आई। पूरा परिवार फूट-फूटकर रो पड़ा। पड़ोसियों ने घर में जुलूस निकाला। कुर्सी-टेबल तक पड़ोस से मंगवानी पड़ी।
बेटियों की विरासत, समाज की प्रेरणा
सोनल की बड़ी बहन दिल्ली में कैग में सेवा दे रही हैं। छोटी बहन और भाई भी उसी राह पर बढ़ रहे हैं। यह परिवार आज पूरे इलाके के लिए गर्व और प्रेरणा का प्रतीक है। ख्यालीलाल शर्मा कहते हैं कि मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी बेटी जज बनेगी। लेकिन शायद यही गौ माता का आशीर्वाद और उसकी तपस्या थी, जिसने उसे यह मुकाम दिया। सोनल की कहानी बताती है कि संसाधनों की कमी कभी भी सफलता की राह नहीं रोक सकती। बेटियों को पढ़ाना ही परिवार का सबसे बड़ा निवेश है। अनुशासन, सादगी और समर्पण से हर कठिनाई पार की जा सकती है।




