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कथौडी समाज के एक दर्जन लोगों ने सात बंदरो की नृसंश तरीके से हत्या की, वन विभाग ने की कार्यवाही

उदयपुर। बंदर का मांस खाने के शौकिन कथौडी समाज के लोगों के एक कृत्य ने गुरूवार को सभी को हिलाकर रख दिया। कथौडी समाज के एक दर्जन लोगों की गैंग ने एक नहीं बल्कि एक साथ सात बंदरो की बेरहमी से ​हत्या कर दी और उसके बाद बंदर के मांस को कपड़ो के बने थैले में भर लिया। यह घटना उदयपुर जिले के सायरा थाना क्षेत्र की है। कुंभलगढ़ वन अभ्यारण्य क्षेत्र के कड़ेच ग्राम पंचायत के रींछवाड़ा गांव से दिल दहला देने वाली इस घटना के सामने आने के बाद सभी सख्ते में आ गए है। इस घटना की सूचना मिलने के बाद हायला रेंज के फॉरेस्टर तुलसीराम मेघवाल अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे लेकिन कथौडी समाज के लोगों ने डरने की बजाय आरोपियों ने अधिकारियों को ही घेरने की कोशिश की, जिससे वहां की स्थिति तनावपूर्ण हो गई।

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लेकिन कुछ समय बाद बोखाड़ा रेंज से क्षेत्रीय वन अधिकारी जयंतीलाल गरासिया, फॉरेस्टर नारायण सिंह राणावत, वनरक्षक वीरेंद्र सिंह शेखावत, अशोक गरासिया, ओमप्रकाश व नीरज मौके पर पहुंचे। इसके बाद वन विभाग के अधिकारियो की संख्या देख कथौडी समाज की गैंग के सदस्य शांत हुए और उसके बाद अधिकारियो ने आरोपियों की तलाश ली उनके कब्जे से बंदरों का मांस, शिकार में प्रयुक्त हथियार और चार मोटरसाइकिल बरामद की। इसके बाद सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर बोखाड़ा वन विभाग कार्यालय लाया गया, जहां पर पूछताछ के बाद आरोपियों ने बंदरों का शिकार करना कबूल कर लिया। वन विभाग ने आरोपियों के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धाराओं में प्रकरण दर्ज कर सभी को गोगुंदा न्यायालय में पेश किया, जहां से न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

तार में फंसा कर बंदरों का किया शिकार

वन विभाग के अधिकारियों की माने तो सभी आरोपी ओगणा थाना क्षेत्र के समीजा गांव के निवासी हैं। इन्होंने बंदरों को लोहे के तार से फंसा कर शिकार किया और फिर धारदार हथियार से टुकड़े कर मांस को कपडे के थैले में भर लिया। फिलहाल, वन विभाग ने पूरे क्षेत्र में गश्त बढ़ा दी है और वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है। बता दे आदिवासी कथोडी समाज जंगलों में रहकर वन्यजीवों के शिकार से जीवनयापन करना पसंद करता है लेकिन अब राज्य सरकार द्वारा उन्हें विभिन्न योजनाओं और सुविधाओं से जोड़ा जा रहा है। इसके बावजूद इस तरह की करतूत से यह साबित होता कि अभी कथौडी समाज के लोग आदिवासी परम्पराओं से उपर नहीं उठना चाहते है।

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