पैदल मार्ग के साथ—साथ रोपवे होने से भक्तों को हो रहा है लाभ
उदयपुर की वैष्णोदेवी के नाम से प्रसिद्ध नीमच माता मंदिर में नवरात्रि के दिनों में भक्तों की भारी भीड लगी हुई हैं। भक्त अलसुबह ही दर्शनों के लिए पहुंच जाते हैं। देवाली की पहाडी पर बने इस मंदिर की लगी प्रतिमा स्वंय उत्पन हुई हैं। इसलिए इसे नीमच माता के नाम से जाना जाता है वहीं दूसरी और पहाडी पर मंदिर होने से इसे वैष्णोंदेवी भी कहते हैं। यहां पर उदयपुर के साथ—साथ कई जिलों से भी श्रद्धालु हर साल नीमच माता के दर्शन करने आते हैं।
नीमच माता मंदिर का निर्माण उदयपुर के महाराणा रणजीत सिंह प्रथम ने करवाया था, जिसका निर्माण कार्य 1652 ई० में शुरू हुआ था और 1680 ई० में पूरी तरह से बन कर तैयार हो गया था। आजादी से पूर्व मंदिर में जाने के लिए व्यवस्था नहीं होने से कुछ लोग ही दर्शनों के लिए पहुंच पाते थे लेकिन अब धीरे—धीरे सुविधाएं डवलप होने से भक्तों की संख्या में इजाफा होता हैं।
कुछ भक्त ऐसे भी है जो प्रतिदिन पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचते है और माताजी के दर्शन कर नीचे उतरते हैं। नवरात्रि में यहां आने वाले भक्तों की माने तो उन पर नीमच माता की पूरी कृपा होती है इसलिए यहां पर आने के बाद सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती हैं।
रोपवे से दिखाई देता है शहर का विहगम दृश्य
नीमच माता मंदिर में दर्शन करने के लिए जाने के लिए पैदल मार्ग के साथ—साथ अब रोपवे भी शुरू हो गया हैं। रोपवे लगने से खासकर बुजुर्ग भक्तों को इसका फायदा हुआ है जो भक्त पैदल माताजी के मंदिर नहीं पहुंच सकते है वे रोपवे के माध्यम से मंदिर तक पहुंचकर दर्शन कर सकते हैं।
करणी माता के यहां बने रोपवे के बाद शहर का यहां पर बना रोपवे दूसरा रोपवे हैं। इस रोपवे से उपर जाने के दौरान पूरे शहर का विहगम दृश्य दिखाई देता है। रोपवे से उपर पहुंच जाने के बाद फतहसागर, स्वरूपसागर व पिछोला झील पूरी दिखाई देती है वहीं दूसरी और नीमच माता मंदिर के चारो तरफ बसा पूरा शहर साफ—साफ दिखाई देता है। ऐसे में यहां पर आने वाले भक्त नीमच माता के दर्शन करने के साथ ही विहगम दृश्य का आंनद लेते है।