आदिवासी अंचल के लिए आजादी से लेकर अब तक कई योजनाएं बनी, प्रदेश में चाहे भाजपा की सरकार रही हो या कांग्रेस की, सभी ने आदिवासियों के लिए कई काम करने के दांवे किए लेकिन वे दावें यहां पर फेल होते दिखाई दे रहे हैं। दो भाई बहन दर—दर की ठौकरें खाने पर मजबूर हैं, उनके माता पिता की मौत हुए करीब पांच साल बीत गए हैं लेकिन दोनों की न तो किसी सरकार ने सुध ली न ही उस पंचायत के जनप्रतिनिधियों या सरकारी कर्मचारियों ने। ऐसे में कई बार दोनों भाई बहन ने तीन से चार दिन तक खाना नहीं खाया और पानी पीकर अपना गुजारा किया।
उदयपुर जिले की गोगुंदा पंचायत समिति की कूकड़ा ग्राम पंचायत, यहां पर दो भाई बहन ऐसे भी हैं जो सरकारी योजनाओं ने पूर्ण रूप से वंचित हैं। दिनेश नाम का युवक दृष्टिहीन हैं तो वहीं उसकी बहन गीता के पास कुछ भी नहीं होने से दोनों दाने—दाने के लिए मोहताज हैं। इनके माता पिता की करीब 5 साल पहले मौत हो गई। पिता के मरने के एक दिन बाद ही उसकी मां ने भी दम तोड दिया और उसके बाद दोनों अनाथ हो गए। इन दोनों के अनाथ होने के बाद अपनों ने भी इनका साथ छोड दिया तो वहीं उसके बाद दोनों के लिए जीवन यापन करना मुश्किल हो गया। दोनों के रहने के लिए मकान नहीं हैं और न ही किसी सरकारी योजना का लाभ मिल रहा हैं। केवल महीने के 10 किलो गेहूं मिलते हैं वह भी करीब 20 दिन में खत्म हो जाते हैं उसके बाद या तो इन्हे भूखे रहना पड़ता हैं या फिर कोई दान दाता या भामाशाह खाने के लिए रोटी दे देते हैं उसे खाकर अपना जीवन यापन करते हैं।
एक बार तो दिनेश दृष्टिहीन होने के बावजूद अपनी बहन की भूख को मिटाने के लिए रोटी तलाश में गांव से करीब 10 किलोमीटर दूर चला गया। इन दोनों को सरकारी सुविधा नहीं मिलने से दोनों के लिए जिंदगी जीना मुश्किल हो गया हैं। बता दे कि तत्कालीन गहलोत सरकार ने गरीबों को फायदा पहुंचाने के लिए कई बड़े—बड़े वादे किए थे। गांवो में कई शिविर भी लगे थे लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों का दिल नहीं पसीजा कि कोई इनकी सहायता कर दे। हांलाकि इनको ग्रामीण शिविर तक ले गए लेकिन वहां बैठे लोगों ने भी इनकी सहायता नहीं की। जिसके चलते वह सभी प्रकार की सुविधाओं से वंचित रह गए।
वहीं इस कडकडाती ठंड से बचने के लिए कपडे तक इनके पास नहीं हैं। ऐसे में कुछ लोगों ने मदद की तो इन्हे कपडे और कम्बल मिल पाई। प्रदेश में एक बार फिर सरकार बदली हैं अब देखना यह होगा कि इस खबर के चलने के बाद सरकारी कर्मचारी दोनों भाई बहन को सरकारी सुविधा दिलाने में सफल हो पाते हैं या फिर इन्हे इसी तरह जिंदगी जीने के लिए मजबूर होना पड़ता हैं।