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झीलों की नगरी उदयपुर की ऐतिहासिक बनावट की खासियत।

झीलों की शहर की ऐतिहासिक बनावट के साथ ही कई खासियत भी हैं। ऐसे ही कुछ खास हैं इस शहर में बने प्रवेश द्वार, जिन्हे पोल कहा गया। हनुमान पोल, रामपोल, किशनपोल, उदियपोल, सूरजपोल, दिल्ली दरवाजा, दंडपोल, हाथीपोल, चांदपोल, सीतापोल, अम्बापोल, ब्रहमपोल जैसे 12 पोल। जिनके नाम लिए बिना शहर में कोई काम नहीं होता। जिसके पीछे छिपा है इनके नामकरण का रोचक इतिहास।

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इतिहासकार गिरीश नाथ माथुर बताते हैं कि नगर में इन पोल का निर्माण लगभग 1735 के बाद शुरू हुआ। यह वह समय था, जब मेवाड़ की राजधानी गोगुंदा या चावंड ना होकर उदयपुर को बनाया गया। किसी ज़माने में नागदा और आहड़ जैसी ऐतिहासिक नगरी भी मेवाड़ का केंद्र रही।

1700 ई. के आसपास उदयपुर केवल महाराणाओं का निवास स्थल था। जब उदयपुर उदयपुर राजधानी बन गई तो यहाँ मुगलो और मराठाओं के संभावित हमले से बचने के लिए शहर की सुरक्षा के लिए दीवार बनाई गई, जिन्हे परकोटा भी कहा जाता है। इन्हीं परकोटो की बीच में द्वार यानी पोल बनाए गए। 1769 के महादजी सिंधिया के आक्रमण के समय मेवाड़ के प्रधानमंत्री ठाकुर अमरचंद बड़वा ने इन पोल पर सशस्त्र सेनाओ की नियुक्ति की थी।

जानिए, कहां-कहां स्थित हैं ये खूबसूरत पोल:

हनुमाल पोल- यह पीछोला झील के दक्षिण पूर्वी किनारे पर स्थित हैं। इसको जल बुर्ज के नाम से भी जाना जाता हैं।

रामपोल – यह माछला मगरा के पश्चिम ढलान पर स्थित है।

किशनपोल- माछला मगरा के पूर्व की तरफ दक्षिण की ओर मुख्य सड़क पर स्थित हैं।

उदियपोल- उदियपोल को कमलिया पोल के नाम से जाना जाता था। जिसको बाद में महाराणा सज्जन सिंह ने उदय सिंह के नाम पर परिवर्तित कर दिया।

सूरजपोल- यह पूर्व की ओर से आने वाले मुख्य मार्ग का प्रवेश द्वारा था।

दिल्ली दरवाजा- उत्तर की ओर से आने वाले मुख्य मार्ग का प्रवेश द्वार था।

दंडपोल- यह हाथीपोल से थोड़ा पूर्व की ओर स्थित एक छोटा द्वार था। जो अब शहरकोट को ढहा देने से नष्ट हो गया हैं।

हाथीपोल- यह उत्तर से आने वाले मार्गों (उत्तरी भारत को जोड़ने वाला प्रमुख व्यापारिक मार्ग-वर्तमान में नेशनल हाइवे-48 तथा पश्चिम से आने वाले मार्गों के लिए मुख्य प्रवेश द्वार था। यह सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला द्वार था, क्योंकि कैलाशपुरी स्थित एकलिंगजी के लिए इसी द्वार से जाना होता था इसलिए यह राज्य के प्रथम श्रेणी के जागीरदार (पारसोली) की सुरक्षा में था। गद्दी बैठने पर महाराणा इसी द्वार का रस्सी तौर पर पूजन करते रहे हैं।

चांदपोल- पीछोला झील के किनारे, शहर के पश्चिम की ओर स्थित द्वार

सीतापोल- चांदपोल के समीप द्वार।

अम्बापोल- चांदपोल के पश्चिम में अम्बामाता मंदिर के पूर्व में स्थित द्वार को अम्बापोल कहा जाता हैं।

ब्रहमपोल- यह पिछोला के उत्तरी पश्चिमी किनारे पर है जिसे शहर का पश्चिमी द्वार कहा जाता हैं।

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